सितंबर 06, 2012

मारा रे ...

आबिद को शेरो शायरी का भूत चढ़ा.

उसने एक दो हाहाकारी शेर लिख डाले इधर उधर से माल चपका के और तय किया की जुम्मे की नमाज के लिए जब सब साथी इकट्ठे होंगे तो वहीँ अचानक इनको सुनायेगा ...

जुम्मा आया, आबिद दोपहर में नमाज के लिए गया और सब साथी दिखते ही वो इमोशनल और रोनी सूरत बनाने की कोशिश करता हुआ बोला - मारा रे ...

ये सुनते ही रिलिजन ऑफ़ पीस (?) के शांतिदूत बाहर निकल के दंगा करने लगे, दुकानों को शांतिपूर्वक तरीके से लूट के आग लगा दी, राहगीरों को सद्भावना के साथ लूट के चाक़ू और डंडे मारे, वाहनों को मासूमियत के साथ आग के हवाले किया और महिलाओं के साथ आदर के साथ जितना संभव बन पडा अभद्रता और बलात्कार किये.

उधर आबिद? उसको "मारा रे ..." के आगे किसी ने सुना ही नहीं, फिर भी वो अकेला बैठा बैठा बोला - "मारा रे ... तेरी आँखों ने मुझे मारा रे "


सितंबर 01, 2012

नीली पगड़ी

ओ नीली पगड़ी वाले

मगरमच्छ की है खाल या गैंडे की? किसकी है तेरी खाल?
असर ही नहीं होता किसी भी चीज का !!
धूल जो जमे तो कोई न कोई कैमरा वाला साफ़ करने भी आ जाता है
ओ नीली पगड़ी वाले

सदन का बहुमत कैसा था ये खरीदा हुआ चमत्कार
यहाँ लोकतंत्र था बेअसर
बस एक ही था तंत्र - विदेशी अम्मी तंत्र
ओ नीली पगड़ी वाले

लेकिन तेरा मुंह जो है उसपे खाल या तो नहीं है या काली पड़ चुकी है
ओ कोयले से काले कव्वे हंस सी तेरी चाल नहीं है
मुंह तो तेरा कब का काला हो चुका था
आइना बस राय ने दिखाया है
ओ नीली पगड़ी वाले

शर्मो हया तो तूने बेच खायी
देश की धरती दुश्मनों को देते भी तुझे लाज न आयी
बत्तीस रुपये के आंकड़ों से खेल खेल के
आमजन की सांस रोकने वाले

इस नीली पगड़ी वाले को पैदा ही क्यों किया
नीली छतरी वाले !!




अप्रैल 24, 2012

भारत सरकार बनाम माइनो परिवार का रामू काका

google जिसका आइडिया दो डेवलपर्स को स्टेनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के एक प्रोजेक्ट पे काम करते समय 96 में आया जिसे NSF फ़ंड दे रहा था ( यही सारी फ़ेडरल एजेंसीज को फ़ंड देता है, और ध्यान रहे आज उसके पास आपकी सभी सूचनाओं का एक विशाल डेटाबेस है), शुरूआत में google google.stanford.edu पर पाया जाता था।

1997 में google.com डोमेन रजिस्टर करवाया गया और 1998 में एक मित्र के गैराज से Google Inc. शुरू की गई।

तब से लेकर अब तक ये एक बैकबोन बन चुकी है, ये आपके बारे में लगभग सभी सूचनायें रखती है, आपके मेल्स, आपके द्वारा विजिटेड साइट्स से लेकर आपके और आपके सर्किल के लोगों के नाम, नंबर, etc. etc.

गूगल और फ़ेसबुक जैसी साइट्स पे उपलब्ध सूचनायें फ़ेडरल एजेंसीज के साथ साझा की जाती है। खैर ये सब हुई बेमतलब की बातें, अब मजेदार बात पे आते हैं कि कैसे ये इसकी भी जय जय, उसकी भी‌ जय जय कर के हर जगह अपना कारोबार चलाता है, सिर्फ़ इन तीन स्क्रीन शोट्स पे नजर डालें, जो कि गूगल इंडिया, गूगल चाइना और गूगल.कोम से लिये गये हैं -

गूगल इंडिया - J&K और भारत की सीमाओं पे ध्यान दें


















दूसरा स्क्रीन शोट है - गूगल चाइना - J&K और चाइना की सीमारेखा पे ध्यान दें -



















तीसरा स्क्रीन शोट है गूगल वर्ल्ड का या google.com का - पिछली अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखाओं से इसकी तुलना करें -



















आया कुछ समझ में कि बिजनेस कैसे किया जाता है? या विशेषकर भारत जैसे देश खुद को कैसे दिन में भी अंधेरे में रखते हैं? भारत सरकार को अपने मंत्रियों की सेक्स सीडियों से निपटने से फ़ुर्सत मिले, मीडिया को खुद के घोटालों पे ना बोलने के लिये पटाये रखने से फ़ुर्सत मिले, देश के लिये उठने वाली आवाजों को दबाने से फ़ुर्सत मिले, इटली की गुलामी से फ़ुर्सत मिले तब तो भारत सरकार भारत के लिये सोचे कुछ करे, पर अफ़सोस कभी‌ तो ये खुद को सर्वशक्तिमान समझने वाली सरकार कोर्ट को हलफ़नामा देकर कहती है कि राम काल्पनिक थे और कभी कोर्ट को कहती है कि इटली के जिन नाविकों ने भारतीय मछुआरों‌ की हत्या की उनको पकडने का केरल सरकार या भारत को अधिकार नहीं !!!

ये भारत सरकार है या माइनो परिवार का रामू काका?

(c) Naresh Panwar. I am sharing this blog post with Creative Commons no-deriv, no-commercial license. मेरी सारी ब्लोग पोस्ट को किसी भी डिजिटल या प्रिंट मीडिया में बिना लिखित परमिशन के पब्लिश या ब्रोडकास्ट की अनुमति नहीं है, पर इस ब्लोग पोस्ट "भारत सरकार बनाम माइनो परिवार का रामू काका" को आप प्रिंट या डिजिटल मीडिया पर जो कि कमर्शियल ना हो में शेयर कर सकते हैं, मुझे कोई आपत्ति नहीं है।

अप्रैल 04, 2012

चलाचल बाबा और मुन्नू


आजकल फ़ेशकुब पे और बला की लोगिंग पे चलाचल बाबा पे टिप्पणियां करने का फ़ैशन है, मैं कुफ़ैशनेबल क्यों रहूं? मैं सोच रहा हूं कि अगर अपने मुन्नू चलाचल दरबार में‌ जायें‌ तो उनकी क्या परेशानी होगी जो वो माइक ले के बतायेंगे?

कल्पना के घोडे दौडने शुरू हो गये हैं तो आपको भी सवारी करवा ही देता हूं -

मुन्नू: बाबा के चरणों में कोटी कोटी प्रणाम

चलाचल बाबा हाथ उठा के मुस्कुराते हैं।

मुन्नू: बाबा मैं पहले विश्व बैंक के लिये काम करता था, उनके कहने पर भारत बेच दिया तो तीनेक लाख की हर महीने पेंशन मिलती थी, पर मेरा स्विस वगैरह में कोई अकाउंट फ़िर भी नहीं था, मैं बडा कुंठाग्रस्त था, कोई काम नहीं आता था फ़िर एक दिन अचानक से कुछ ना आने के कारण ही प्रधानमंत्री बना दिया गया मुझे, सब ठीक चल रहा था बाबा कि अचानक ही सब मेरा मजाक बनाने लग गये हैं, पद छोडने का बोलते हैं, मैडम भी बोलती हैं कि मेरा छोरा आवेगा गद्दी खाली कर, मैं बहुत परेशान हूं क्या करूं बाबा ?

चलाचल बाबा: पिछली बार सच कब बोला था?

मुन्नू : बाबा बस अभी जब माइक पे आपको समस्या बताई तब बोला था।

चलाचल बाबा: नहीं उससे पहले कब बोला था?

मुन्नू: बाबा उससे पहले तो मैं मेरी शादी के समय घबरा के कभी बोला था पर उस बात को तो तीसेक साल हो गये होंगे

चलाचल बाबा: अच्छा तू करता क्या है?

मुन्नू: करता तो कुछ नहीं, पर-धन-मंत्री हूं, सब अपना अपना धन कमायें ये चुपचाप देखना होता है

ये कह के मुन्नू आगे बोलते बोलते एकदम से चुप ...

चलाचल बाबा: आगे बोल बेटा, बोलते बोलते रुक क्यों गया?

मुन्नू चुप

बाबा: अरे आगे बोल, और क्या करता है?

मुन्नू घबराता हुआ: बाबा मैं इतना बोल गया ये ही काफ़ी है, मुझे किसी भी टोपिक पे किसी भी‌ मैटर पे बोलने से मैडम ने मना कर रखा है और कह रखा है कि अगर ज्यादा ही जरूरत हो तो बस इतना ही बोलना कि "मुझे इस बारे में पता नहीं" या "मैं इस बारे में नहीं जानता" या "ठगबंधन की मजबूरी है" या "देखेंगे"

बाबा: बस इसीलिये तेरी रुक रही है, जा जाकर अपने ठगबंधन के ठगों के नाम और उनके कारनामे देश को बता दे और देख तुझे तेरी खोई (खोई कहते हुए बाबा के होठों का एक किनारा उठ गया) इज्जत कैसे वापस मिलती है, देश वाले कैसे तुझे सर आंखों पे बिठाते हैं, जा जाकर सच बोल।

मुन्नू हां बाबा बोल कर सर झुकाये लौट आया पर चलाचल बाबा ने जो करने को बोला था उसके लिये ना जाने उसने मैडम से परमिशन ली है के नहीं, शायद परमिशन नहीं मिली क्योंकि हमें अभी तक सच सुनने को भी नहीं मिला।
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मार्च 09, 2012

हो रहा भारत निर्माण ?

जब से मेरे मैनेजर को पता चला है कि मैं ब्लोग वगैरह लिखता हूं और वो भी व्यंग वाले, उसकी पूरी कोशिश है कि मुझसे काम करवा करवा के मार डाला जाये, ना जाने किसने उसकी खोपडी में घुसा दिया है कि ये ब्लोगर और राइटर ठाले बैठे फ़ालतू के जंतू होते हैं। खैर अपना क्या है, भारत में रहने के कारण गधे जैसे काम करने की आदत तो सभी आम आदमियों की होती है, अपनी भी है। हां थोडा सा आलसी और 'इन्डिसिप्लिन्ड' हो गया था, पर वो आदत शादी के बाद श्रीमती जी ने सुधार दी। अगर आप स्माइलीज वगैरह समझते हैं तो इससे समझिये - :(

चलिये इस आम आदमी को छोड के आगे देखते हैं -

 शक संवत को 'फ़ोलो' करने वाले महान सभ्यता के वंशजों के इसपे आधारित पंचांग आदि को शक की निगाह से देखने के कारण तिथी वगैरह का तो पता नहीं पर हां कैलेंडर के हिसाब से कोई सन् २०१०-२०२० के आसपास का समय रहा होगा।

भारत काफ़ी प्रगति कर चुका था। सरकारें सुनिश्चित कर चुकी थीं कि चार्वाक दर्शन को आगे बढाया जाये, इसके लिये उनके थिंक टैंकों ने दिन रात कमेटियों पे कमेटियां बना कर (अरे! दिन रात का गलत प्रयोग हो गया, अभी भूल सुधार करता हूं), और दिन रात टीए डीए उठा कर नई नई स्कीमें बनाई थीं जिनके नाम के आगे और पीछे किसी ना किसी तरह से 'गांधी' लगाकर सुनिश्चित किया गया कि नाम सुनते ही पता चल जाये कि ये योजनायें और स्कीमें कोई काम की नहीं हैं।

इनमें से कुछ स्कीमें तो आपको घर बैठे रोजगार देती थीं, बस आपको एक सरकारी कागज पे अपना अंगूठा या हस्ताक्षर करने होते थे और मिलने वाली रकम का कुछ हिस्सा बांटना पडता था, मिल बांट के खाने का ऐसा अद्भुत शिक्षण प्राप्त करने के लिये कई विदेशी भी दौरा कर चुके थे पर उनको दौरे में ये सब देख के दौरों के सिवाय कुछ भी नहीं मिला। बेचारे, च च च ।  और हां आपने घर बैठे रोजगार प्राप्त कर लिया तो इसके बाद कुछ खाना पीना भी है कि नहीं? इसके लिये एक अलग स्कीम थी जो आपके खाना पीने का बंदोबस्त करने के लिये लाई गई थी और आपको घर बैठे (ठीक पहले वाली स्कीम की तरह ही) खाना पीना दिलाती थी। क्या? मिल बांट के? हां वो तो सारी योजनाओं का अभिन्न अंग ही था, इसके बिना कैसा विश्वबंधुत्व?

सो लोगों के पास खूब समय हुआ करता था और वो इस समय को अपने अपने तरीके ठिकाने लगाया करते थे, कुछ लोग जो अभी तक 'सोशल' नहीं हुए थे, कई लोगों के साथ गपबाजी करते हुए, चौपाल पे या कहीं भी दिनकटी करते थे हांडी वगैरह लगा के और जो 'सोशल' हो गये थे वो अपने कमरे में अकेले बैठ के 'सोशल साइट्स' पे कई लोगों के साथ गपबाजी करते हुए खुद को प्रोफ़ेशनल 'समझदार' दिखाने के तनाव भरे काम का जितनी देर हो सके निर्वहन करते थे । हां ये दूसरे वाले 'सोशल' लोगों को इन योजनाओं की पूरी जानकारी नहीं होती थी, पर उनको लगता था कि मानों उन्होनें इन पर और विश्व के किसी भी मुद्दे पर ज्ञान का प्रचार प्रसार करने का टेंडर छुडा रखा है और साल बीतते बीतते टारगेट पूरा करना है।

बाकी? बाकी शास्त्रीय संगीत सुनते थॆ सीरियल्स के बैकग्राउंड में आने वाले, सूअर की चर्बी से बनी क्रीम लगा के गोरे होते थे और दिन भर एड्स (मेरा मतलब एडवरटाइजमेंट्स) देखते थे, जिनमें से हरेक एड का आश्चर्यजनक तरीके से एक ही संदेश होता था कि 'लडकी पट जायेगी', हमारी कंपनी की चड्डी - पहनो लडकी पट जायेगी, हमारी कंपनी की शेविंग क्रीम काम में लो - लडकी पट जायेगी, हमारी चिप्स खाओ - लडकी पट जायेगी, कुल मिला के बडा लोकतांत्रिक माहौल था, बस हमारे ब्रांड का प्रोडक्ट काम में लो - लडकी पट जायेगी, अरे अपने आप आपके पास आयेगी।

मानो ये एड जो लोग दिन भर धूप तक ना देखने के बाद भी सरकारी स्कीमों का फ़ायदा ना उठा पा रहे हों क्योंकि उनकी आमदनी सरकारी 32 रुपये की रेखा से सैकडॊं या हजारों गुना ज्यादा है, उनको जीवन का ध्येय दे रहे हों।

दूसरी तरफ़ इन सब से अनजान किसानों का लागत मूल्य बढता जा रहा था और किसान की आत्महत्या को अब मीडिया खबर तक नहीं समझता था। प्राकॄतिक संसाधन बेच के खाये जा रहे थे, आतंकियों के लिये सरकार के मंत्री बोलते थे कि हमने गुपचुप उनका हाथ थाम रखा है और चुनाव से पहले आम आदमी के पैसे से इसी मीडिया में बेशर्म सरकार और जनता को भिखारी बोलने वाले, थोपे गये सरकारी राजपरिवार के लिये, ना जाने किसके निर्माण के गाने बजाये जाते थे  !!



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जनवरी 30, 2012

चौबे दुबे और आपकी कहानी



चौबे जी को अपने एन.जी.ओ. में फंड में कमी आती महसूस हुई. तुरंत कोढ़ कमिटी कि मीटिंग बुलाई गई.

कोढ़ कमिटी कि ज्यादातर मीटिंग सेफ्टीगन पिद्दी में होती थी. वो एक छोटा सा कस्बानुमा गाँव था जो था तो भारत में पर जैसे हिंदू माइनोरिटी होते ही उस जगह शरिया आ धमकता है भले ही वो हिस्सा भारत में हो उसी तरह इस सेफ्टीगन में भी राज एक एन.जी.ओ. चलाने वाले चौबे जी का चलता था.

चौबे जी अपने जमाने में बोडी बिल्डर हुआ करते थे, गाँव वालों को पीटना, फिर भाग के महानगर जा के वहां गुंडागर्दी करते हुए कभी साथियों को तो कभी ड्यूटी कर रहे पुलिस वालों को पीटना वगैरह उनके कर्म थे जिनको कई साल बाद मीडिया पानी से धो के फफूंद हटा के, चमकीली चद्दर में पैक कर के बेच रहा था. और मोटा मुनाफ़ा कमा रहा था.

नहीं पल्ले पड रहा? अब भारत में सच बोलने पे कोई ना कोई आयोग पीछे पडने की संभावना रहती है कभी मानवधिक्कार आयोग, कभी मुस्लिम (अल्पसंख्यक) आयोग कभी चुनाव आयोग तो कभी सरकारी एजेंसियां मिल के ही सात साल पुरानी रसीद निकाल के कहती हैं कि ये तो चोर है !! खैर जान कीबोर्ड पे लेकर थोडा और समझाने की कोशिश करता हूं, क्या है कि भलाई का कीडा काटा है ना मुझे और वो भी बडे जोर से काटा है।

हुआ यूं कि एक बहुत बडे वकील हुआ करते थे। बडे इन द सेंस कि मालदार थे और चोरों की लगभग सभी मंडलियों के सरदारों से राम रमी थी। एक बार वैराग्य जागने पे देव भूमि छोड के अमेरिका जा के वहीं की नागरिकता ले के बस गये थे पर कुछ सालों में ही वहां गुलाटियां मारने को ना मिलने के कारण मन मसोस के आदत के हाथों मजबूर हो के देव भूमि पे धीमे आते कलियुग को तीव्र गति से अवतराने पुन: लौट आये थे ।

वापस आने पर कैटल क्लास पे राज करते समूह में उनको उच्च पद प्राप्ति हुई, जरूर पिछले जन्मों के पुण्यों का फ़ल होगा ऐसा उनके जानकार बताते हैं।

कैटल क्लास पे राज करता समूह वैसे तो निर्विघ्न राज कर रहा था, नये नये तरीके और मार्ग निकाले गये थे जिन पर क्षुद्र मानव नहीं वरन दुनिया के सभी देशों की मुद्रायें निर्बाध गति से इधर से उधर जा सके, पर ना जाने क्यों प्रगति करते कुछ लोग कैटल क्लास का भला सोचने वाले लोगों की आंखों की किरकिरी बन रहे थे । इन कैटल क्लास का भला सोचते लोगों को लग रहा था कि भारत की मुद्रा पे काली स्याही पोत के जो मुद्रा एक्सप्रेस वे पे धकेल दिया जाता है उसे अगर कैटल क्लास के भले पे काम लाया जाये तो शायद इस क्लास का कुछ भला हो !! कैसी कैसी तुच्छ सोच रखते हैं ये लोग भी, क्या करें इन जैसे लोगों ने कभी 'माइक' पकडे लेडी को तो सुना नहीं सो इनकी सोच ही छोटी है, छोटी सोच वालों की छोटी छोटी मांगें !!

पर इन मांग करने वालों में से एक जने से राज करते लोग भयभीत हो गये, वो सीधा साधा सन्यासी था जिसे राजनीती का क ख ग भी नहीं आता था पर उसने इन राज करते , हां यार वही कैटल क्लास पे राज करते लोगों से मुद्रा पे काली स्याही पोतने का विरोध कर डाला और सबसे अजीब मांग तो ये कर डाली कि जो मुद्रा पहले स्याही पोत के एक्सप्रेस वे पे धकेल दी गयी है उसे वापस लाओ ... हा हा हा हा हा मेरी तो हंसी नहीं रुक रही, कैसी कैसी बेतुकी मांगें करते हैं ये कैटल क्लास के लोग !

खैर इस बेतुकी मांग को सुनकर दिल्ली में बैठे चमगादडों ने हाई फ़्रिक्वेंसी में चिल्ली मारी जो कि वो आवाज सुन सकने वाले सभी प्राणियों को पूरी एको साउंड के साथ दुनिया भर में सुनाई दी।

इस चिल्ली को सुन के कई प्राणी सहायता करने आये, राज करते लोगों ने उनमें से जिन लोगों को चुना उनमें से एक गणित का ज्ञाता था जो कि गुणा भाग में माहिर था इतना माहिर कि उसे ये तक याद नहीं रहता था कि उसने किससे कितना रोकडा उधार लिया है और कब कब कहां कहां लिया है ! एक प्राणी ऐसा था जो कि जिंदगी भर ईमानदार छवि के साथ रहा पर अब ठेले पे आ के टैक्सी से आया हूं बोलता था । एक अन्य प्राणी को रंगा सियार कह सकते हैं, वो पवित्र माने जाने वाले भगवा रंग के कडाह में कूद गया था - हरियाणा प्रदेश में कैटल क्लास के राजाओं की खिदमत करते करते, जब बाहर निकला तो सबको सर झुकाये देख के बडा चकराया, आइना देख के उसे जब समझ आया तब से उसने अपने नाम के आगे स्वामी लगा लिया और पूरे जंगल में रंगे सियार की भांति हुक्म देता घूम रहा था कि उसे सीधा भगवान ने ही भेजा है। एक अन्य प्राणी जो चुना गया था वो बचपन में ठुक ठुका के इतना कुंठाग्रस्त हो गया था कि जब वो अपनी आप बीती बताता तो लोग व्यंग समझ के हंसने लगते और वो सबपे लानत भेज के खुश होता रहता। अब सवाल था कि इन सर्कस के प्राणियों का नेता किसे चुना जाये जिसे ये जैसा बोले वैसा करे और जिसका लोग भी भावनाओं में बह के यकीन कर सकें।

इनके नेता के रूप में हमारे प्यारे चौबे जी को चुना गया उनकी ख्याति अनशनकारी के रूप में अपने प्रदेश की सीमायें फ़ाड फ़ाड के बाहर निकलने को बेताब हो रही थीं।

गुणा भाग को भेजा गया चौबे जी को शीशे में उतारने, गुणा भाग ने ये काम बखूबी किया।

चौबे और उनकी मंडली ने आ के "चुरघुस" नाम का मंत्र मीडिया के लाउडस्पीकर में फ़ूंका और वो सारे देश में गूंज गया । इस मंत्र की इतनी महिमा गायी गयी कि सबको यकीन हो चला कि पचास पैसे से ले कर हजार रूपये के नोट तक का भ्रष्टाचार बस अब एक टोपी लगा के 'मैं भी चौबे' बोलने और हमें चाहिये "चुरघुस" बोलने से खत्म हो जायेगा। जनता जो मोमबत्ती जला के ये सब फ़ोर्ड सर्कस कर रही थी को देख देख के यूरो, डोलर और स्विस फ़्रेंक तक सब हंस रहे थे ।

पर चौबे जी ने अपना अनशनकारी धर्म निभाया और मीडिया के कांधे चढ कर देश के लिये उठी आवाजों को 'चेक मेट' कर दिया । और मजे की बात ये कि देश का नाम ले के देश को ही जो शह मात दी गई उसे महसूस तो सबने किया पर गलती किसने, कहां की ये काफ़ी समय तक किसी के समझ ही ना आया। चौबे जी फ़ूले ना समाये ।

हर पांच साल बाद आने वाली बरसात आने को थी । चंदा ठिकाने लग चुका था, फ़ंड में कमी आते देख चौबे जी ने कोढ कमिटी की मीटिंग बुलाई और इस बार सर्कस समुन्दर के किनारे लगाना तय हुआ ।

चौबे जी भूल गये कि जनता ने स्टील के गिलास के अंदर विटामिन मिला पानी और गुणा भाग की कमजोर गणित, ईमानदार का ठेला, रंगे सियार की हुंवा हूंवा, और एक कुंठित व्यक्तित्व को विश्वास के साथ पहचान लिया है ।

समुन्दर के किनारे जो भंडारा लगा उसपे छुट्टी के दिन भी गिने चुने लोग देखे गये । यही वो समय था जब चौबे जी को लगा कि कुछ गलत किया मैंने और उन्होनें घबरा के 'गुणा भाग' की आवाज को पहली बार अनसुना करके जोर से उस सन्यासी को आवाज लगाई जिसके लिये वो कहा करते थे कि इसे तो अपने पांडाल में घुसने तक नहीं दूंगा । पर सन्यासी भी होशियार हो चुका था, उसने छाछ से ना जलने का निश्चय किया और दूर से ही वापस आवाज लगा दी की मेरा आपको पूरा समर्थन है। गोल भवन के कर्णधारों ने उस शाम दो मुर्गे ज्यादा खाये ।

समय होत बलवान । चौबे जी जो मीडिया के कांधे चढ कर महापराक्रमी की पदवी प्राप्त कर चुके थे, समुन्दर किनारे सदमे में आ गये । वैसे ही तबीयत खराब थी थोडी सी, सदमे के कारण और खराब हो गई । जनता उनको अब चौबे जी की बजाय दुबे जी बोलने लग गयी। दु:ख और सदमें में उन्होनें अस्पताल की शरण ली, जहां फ़िर से राज करते लोगों ने उन्हें गिनीपिग बना डाला । और मनुष्यों पे सीधे ही दवाई टेस्ट करने वाले डाक्टर को इस उत्कॄष्ट कार्य के लिये एक सरकारी चाटुकारों को दिया जाने वाला पुरस्कार भी दिया गया । दुबे जी अभी भी स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं, आशा है वो स्वस्थ हो कर लौटेंगे और इस बार गुणा भाग, ईमानदारी का ठेला और कुंठित व्यक्तित्व को किनारे कर राष्ट्र के लिये सच में लडने वाले सन्यासी के साथ ईमानदारी से आ कर पुन: चौबे जी कहलायेंगे । अन्यथा जिंदगी भर चौबे जी रहने के बाद दुबे जी बनने का दर्द उन्हें हमेशा वैसे ही सालता रहेगा जैसे कि 'बहुत बडे वकील' और सरकारी राजपरिवार को नेटवर्किंग साइट्स पर फ़ैला सच सालता है।


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जनवरी 10, 2012

How to add facebook social plugin to your blogpost in 2 steps



For a change, here are two simple steps to add facebook like, send and comment box to your blogpost. Yup, you'll get separate one for each post.

Let's begin

1. edit your template in HTML and

above <head>, paste -
---------------------
<div id='fb-root'/>
<script>(function(d, s, id) {
  var js, fjs = d.getElementsByTagName(s)[0];
  if (d.getElementById(id)) return;
  js = d.createElement(s); js.id = id;
  js.src = &quot;//connect.facebook.net/en_US/all.js#xfbml=1&quot;;
  fjs.parentNode.insertBefore(js, fjs);
}(document, &#39;script&#39;, &#39;facebook-jssdk&#39;));</script>
<script src='http://code.jquery.com/jquery-latest.js'/>
---------------------

2. expand widget and search <data:post.body/>, just below that, paste these lines -
----------------------
<script src='http://connect.facebook.net/en_US/all.js#xfbml=1'/>
<fb:like expr:href='data:post.url' send='true' show_faces='true' width='450'/>
<fb:comments expr:href='data:post.url' num_posts='2' width='500'/>
----------------------

It's done. Say thanks, view your blog and keep posting.