नवंबर 23, 2011

एक गांव की कहानी - भाग एक

एक गांव की कहानी


एक बार एक गांव था जिसमें सब लोग हिल कर और कभी कभी मिल कर रहा करते थे |


हिल कर ऐसे कि वहां जीना आसान काम ना था, हुआ ये कि वहां के जो प्रधान थे वो दुबारा प्रधान बन गये | कहने को तो लोकतंत्र था पर मर्जी सब पुरानी ठकुराइन की ही चलती थी | प्रधान को सुबह दोपहर और शाम को ठकुराइन के यहां हाजरी देने जाते देखा जा सकता था | गाहे बगाहे नहीं अक्सर उनको फोन पर भी जी मैडम जी मैडम कहते सुना गया था ऐसा उनके कुछ मुंहलगे बताते थे | तो जब ये प्रधान दुबारा सत्तासीन हुए तो ना जाने किसने इनको या इनकी मम्मी (ठकुराइन) को बोल दिया कि ये आपका आखिरी राजपाट है इसके बाद आप दुबारा नहीं आने वाले | हो सकता है कि उसने मजाक किया हो पर प्रधान और उनकी ठकुराइन मम्मी ने इसे सच मान लिया |



फिर क्या था, चीनी बेचने वाले मोटे दुकानदार ने अगले ही दिन चीनी के भाव हर सप्ताह बढाने शुरू कर दिये |

चूल्हा जलाने के लिये जंगल से लकडी काटने पर टैक्स धीरे धीरे बढा कर तिगुना कर दिया गया |

चिट्ठी पत्री लाने ले जाने के काम में तो इतना घपला किया गया कि पंचायत में आज भी सुनवाई हो रही है और पंच खुद चकराये हुए हैं कि इनका करें तो क्या करें |


ना तो गांव की‌ जनता से निगलते बन रहा था और ना उगलते, इसी बीच गांव के बीच में एक गेरुये वस्त्र पहने फ़कीर ने बोला कि मैं अगले महीने चौपाल पर आकर तब तक बैठूंगा और तब तक बैठ रहूंगा जब तक गांव के चोर परेशान होकर खुद को चोर ना बोलें और अपनी अपनी चोरी मान कर चुपचाप चुराया हुआ माल ना लौटा दें | गांव वाले खुश हुए, तालियां बजाइ | गांव वाले अक्सर साल दो साल में बढिया बातें सुनकर खुश हो जाते थे | पर ये बात डुगडुगी वालों ने गांव में किसी को भी नहीं बतायी, बोलते हैं कि उनको ना जाने किसने बहुत मोटी रकम दी‌ थी |


खैर फ़कीर की घोषणा के अगले ही‌ दिन जब उजाला हुआ तो सबने देखा कि चौपाल पर एक श्वेतवस्त्रधारी माणूस बैठा है जो दूर से देखने पर बिलकुल बगुले जैसा दिखाई‌ देता था | गांव वाले पास गये तो माणूस ने कहा गांव वालों अब मैं आ गया हूं अब आप लोग चिंता ना करें हम अब जो भी चोर हैं उनको घर से निकलते ही पकड लेंगे | क्योंकि हम पूरे गांव में फ़ंदा बिछा देंगे | गांव वाले फिर खुश हुए, इतनी जल्दी खुश होने का दूसरा मौका वो छोडना नहीं चाहते थे | डुगडुगी वालों ने मानों श्वेतवस्त्रधारी माणूस को सर आंखों पर बैठा लिया |

पर हिम्मत देखिये ना तो चोरों ने घर से निकलना बंद किया और ना चोरियां | माणूस कुछ दिन चौपाल पर गाने गा कर वापस अपने घर चले गये, पर जो लोग माणूस को गांव में लेकर आये थे, वो गांव वालों का सम्मान पा कर बौरा गये |

अगला महीना आया, फ़कीर ने जैसा बोला था, चौपाल पर डेरा जमाया | चोरों में खलबली मची, क्योंकि गांव वाले भले ही फ़कीर की बातें पूरी नहीं मानते थे पर काम पर खेत जाने से पहले फ़कीर को प्रणाम करके जाते थे | कुछ ही समय में आपस में बात करते चोरों को सुना गया - "यार वो माणूस को तो पूरा सेट कर रखा था, हमारे लोग ही ले के आये थे, पर ये फ़कीर खतरनाक है, अपने आप आया है" - "हां सुना है इसके ना कोई बाल है ना बच्चे" - "क्या ? इसके बाल नहीं है?" - "सम्मिलित खी खी खी" - "चलो यार इसको पहले डरा के देखते हैं ना माना तो रात को ..." फिर से लकडबग्गा के समूह जैसी हंसी सुनाई दी |

वही हुआ जैसा चोरों ने तय किया था | दो दिन बाद जब गांव वाले सोकर उठे तो सवेरे सवेरे उन्होनें पाया कि चौपाल पर कोई नहीं है और चारों तरफ़ खून बिखरा पडा है | कुछ लोगों ने प्रधान से जाकर पूछने की कोशिश की तो उनको बीच में ही‌ रोककर डुगडुगी वालों ने और बेगारों ने बताया कि वो फ़कीर तो खुद चोर था, उससे गांव को खतरा था इसलिये हमने जब उससे मिलने गये तो वो खुद ही भाग खडा हुआ |


पर रात को मिलने ? और वो खून ?

अरे कुछ नहीं तुम लोगों को तो बस बातें बनाने को चाहिये जाओ अपने अपने खेत पर काम करो, ध्यान रखना कि लगान में कोई रियायत नहीं दी‌ जायेगी |

(अगले पोस्ट में जारी ...)


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