दिसंबर 02, 2011

एक गांव की कहानी - भाग तीन

भाग एक और भाग दो से आगे . . .

इतिहास अपने आप को दोहराता है।

वहीं से शुरु करते हैं जहां कहानी को छोडा था।

प्रधान और ठकुराईन ने इस बीच ये मानते हुए कि गांव में जो तोलता है कम तोलता है और हमेशा ही महंगे भाव बेचता है, दूसरे गांवों से बडे बडे दुकानदारों को गांव में दुकानें खोलने के लिये बुला लिया। जबकि वास्तव में वो अपना लालच और हिस्सा छोड देते तो महंगाई तुरंत कम हो जाती।

लोग पहले से ही परेशान थे, काफ़ी लोगों ने, जिनमें बडी संख्या दुकानदारों की और दुकानदारों द्वारा प्रायोजित भीड की थी, गलियों में खूब चिल्ल पों मचाई। पर प्रधान और मंडली ने रात्रिदमन कांड के समय देख लिया था कि इन चनों में भाड फोडने का दम नहीं है इसलिये वो इन सब घटनाओं के मजे लेते रहे।

कुछ पंचों ने जब विरोध किया तो पहले तो उनको भाव नहीं दिया, फिर उन पर पंचायत में चल रहे मुकदमों का डर और कुछ थैलियां दिखाई जिनके हिलने पर खन खन की आवाज आती थी।

इसके बाद विरोध करने वाले पंचों ने विरोध ठीक उसी तरह किया जैसे नई नवेली दुल्हन सुहागरात को करती है। गांव की गलियों मे हल्ला गुल्ला करने वालों को धर्म और जाति के नाम पर बांट दिया गया और वो क्या करना था ये भूल कर एक दूसरे को खुशी खुशी मारने काटने में जुट गये।

इस बीच पडोस के गावों में कुछ घटनायें घटीं जिनका आसानी से अनुमान लगाया जा सकता था और जिन्होनें दूरगामी परिणाम दिखाये।

पास में एक गांव था जहां ना जाने कैसे पौधे उगाये गये थे कि वहां के लोग मानवभक्षी हो गये थे। उन पर नकेल कसने को और बाडाबंदी करने को जब दूसरे गांवों के लोगों ने कोशिश की तो बढते खर्चों ने उनका रास्ता रोक दिया।  हालांकि वहां के प्राकॄतिक साधन ललचाते थे फिर भी ये घाटे का सौदा लगने लगा। इस बीच प्रधान के गांव और पास के गांव के बीच तालाब में खुदाई करने को लेकर हल्की गर्मागर्मी हुई जिसे मानवभक्षी गांव के लोगों ने बीच में कूद कर युद्ध का रूप दे दिया। दूसरे गांवों के लोगों ने सब पक्षों को खूब हथियार बेच कर मोटा मुनाफ़ा कमाया और अपनी अपनी बर्बाद हुई अर्थव्यवस्था में नई जान डाल ली।

युद्ध का परिणाम क्या रहा?

चूंकि प्रधान के गांव के लोगों ने अपना सारा चिंतन मुद्रा और मुद्रा की दुनिया तक सीमित कर रखा था इसलिये उनके कभी दिमाग में ही‌ नहीं आया कि मानवभक्षी गांव का और तालाब के समीप गांव का गठजोड उनके कितना खिलाफ़ जा रहा है। युद्ध कब उत्कर्ष लाते हैं, ये युद्ध भी अपवाद नहीं था। इसका परिणाम ये निकला कि ये बहुत लंबा चला, धीरे धीरे ये सब गांवों में फ़ैल गया, गुट बन गये और एक दूसरे पर जम कर हमले किये गये। सबसे ज्यादा नुकसान प्रधान के गांव को झेलना पडा। युद्ध में उपयोग में लाये गये हथियारों ने गांव की आधी आबादी को और आधी से ज्याद जमीन का उपजाऊ होना खत्म कर दिया। पचास साल बाद आज टुकडों में बंटा प्रधान का और मानवभक्षी लोगों का गांव दूसरे पडोस के गांवों द्वारा शासित होता है।

बहुत कहानी हो गई, इस कहानी के हिसाब से अभी‌ जो समय गुजर रहा है उसमें मुख्य चुनावों से ठीक पहले हमारे प्यारे प्रधान गुट द्वारा अल्लाह हो अकबर और हर हर महादेव के नारे लगवाये जायेंगे। क्या आप तैयार हैं? ना ना उसके लिये 14 का इंतजार नहीं करना पडेगा आपको, जब हमारे प्यारे रात्रिशक्तिदिखाऊ निरपराधपीटक बेगुनाहहड्डीतोडक लुंगीधारी केंद्रीय मंत्री और परम आदरणीय विमानयात्राजांचमुक्त अद्भुतसंपत्तिउत्पाद्क गांव के सब चरणलोटन मानवों के प्यारे दामाद जी तिहाडधाम प्रस्थान करने वाले होंगे तब, अब आगे आप सोचिये कब.

कथा समाप्तं।


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