दिसंबर 26, 2011

मुफ्त सलाह और आम आदमी

वो काफी डरा डरा और सदमे में था.

शकल ठीक ठीक वैसी ही बना रखी थी, जैसे भारत की तथाकथित आजादी के करीब 65 साल बाद भी दूर गाँव का आम शांतिप्रिय भारतीय, जो रोजी रोटी कमाने के लिए भागदौड करता रहता है और उसे अचानक पुलिस स्टेशन बुलाया गया हो. या वैसी जैसी संघ का नाम सुनते ही फर्जी देशभक्तों की हो जाती है.

मैंने पूछा कि क्या बात है भाई, ये क्या हाल बना रखा है?

कहने लगा परेशानी ही परेशानी है, क्या बताऊँ?

मैंने फिर पूछा, वो तो हर किसी को है, अब बताएगा तो तुझे मुफ्त में मेरे जैसे महाज्ञानी की सलाह मिल जायेगी (और कोई माने या ना माने, मैं तो हमेशा से खुद को महाज्ञानी मानता आया हूँ), फिर भी नहीं बताना चाहता और नखरे दिखा रहा है तो दिखाता रह.

मुफ्त का नाम सुनते ही उसकी आँखों में चमक आ गई, और चेहरे पे वातावरण में प्रदूषण की तरह छाया डर और सदमा कम हुआ, वो बोला - यार ये पहले से ही सरकार ने पुंगी बजा रखी है और अब ये नया साल फिर से आ गया और नए नए हमले रुकने का नाम ही नहीं ले रहे.

मैं हल्का सा मुस्कुराने से खुद को नहीं रोक पाया, हाँ ये नया साल तो हर साल आ जाता है, कितनी परेशानी की बात है, और हमले? वो तो हमारे सरकारी कारिंदे बोलते हैं कि जनता की तो आदत हो गई है हमलों की और मरने की. सरकार मस्त, आतंकी मस्त तो तू क्यों जां सुखा रहा है बेमतलब के, हमला हो, मर जाए तो बोलना. तब तक चुप रह.

वो बोला - हाँ, जैसे तैसे इस गुजरते साल के साथ एडजस्ट करके ठीक ठाक ज़िंदा रहना सीखा था, फिर से एक और नया साल आ गया, अब ये ना जाने कैसा रहेगा? और मैं आतंकी हमलों की बात नहीं कर रहा था. मैं तो मीडिया के द्वारा हो रहे हमलों की बात कर रहा था.

मैं थोडा चकराया, और बोला, अरे इसमें क्या परेशानी है, ना जाने कितने मीडिया हाउस और उनके चैनल्स इस दुःख में दुबले हो रहे हैं की आपका नया साल कैसा रहेगा जानिये सिर्फ और सिर्फ हमारे ज्योतिषी की साथ, हमारे चैनल पर, और हमारे चैनल पे ना देखा तो वो दूसरा चैनल वाला तो बता ही देगा, वो नहीं तो तीसरा, नहीं तो चौथा, पांचवां ... और मीडिया के द्वारा कौनसे नए हमले होने लग गए वो तो काफी समय से हो रहे हैं, उनसे क्या घबराना, अब तो काफी लोग जानते हैं की ये नंगे हमें कपडे बेचने की कोशिश कर रहे हैं. फिर भी खुल के बता. ये खुल के का मैंने इसलिए बोला की जब भी, भारत के आम आदमी को अगर आप खुल के बोलने को राजी कर लेते हैं तो आपका मस्त टाइम पास हो जाता है, और वो तो था ही मानो सर्टिफाइड आम आदमी. वो जब भी बोलता था तो कुछ कुछ अपनापन जैसा तो महसूस होता था, पर थोड़ा डर भी लगा रहता था की जाने अब क्या दुखडा सुनाएगा, यु नो ना, पूअर कॉमन मैन ऑफ इंडिया, बेचारा.

हाँ तो उसने कहा - न्यूज चैनल ना जाने क्यों हर कुछ देर में सरकार या उनके आकाओं का गुणगान करते रहते हैं, न्यूज कम दिखाते हैं, पेड न्यूज ज्यादा.

मैं मन ही मन सत्ता पक्ष की तरह चौंका अरे इसे तो अब पेड न्यूज भी समझ में आने लगी है !!

उसने बोलना जारी रखा - ये हमें बताते रहते हैं की कौनसा फलानेवुड का बन्दा या ढिकानेवुड की बंदी अब कहाँ क्या करने वाली है, कैसे करने वाली है, किसके साथ करने वाली है, अचानक उसे ध्यान आया कि उसने "क्या" को रहस्य के आवरण में छुपा रखा है, तो बोला कि इन चैनल वालों का बस चले तो इन फालतू लोगों को चौबीस घंटे लाइव दिखाएँ. कभी डर लगता है कि ना जाने कब डर्टी न्यूज देखने को मिल जाए या पहले जैसे रावण हर जगह आ आ के तंग करता था अब ये कौन टू ना करे. वरना हर जगह कौन टू कौन टू हो जाएगा. उफ़.

बातें मजेदार कर रहा था इसलिए मैंने टोका नहीं. उसने आगे कहा अब बच्चों के चैनल पर विज्ञापन बच्चों के प्रोडक्ट्स के आयें तो समझ आता है पर वहाँ भी मार्केट साबुन बेचता है !! बच्चों को हथियार बना के? ना तो कोई चैनल ये कभी बताता है कि CWG से पहले उसके विरुद्ध न्यूज ना दिखाने के लिए उन्होंने जो विज्ञापन रूपी गाजरें डाली थी वो कितनी असरदार रहीं थी? ना कोई शीला शुंगलू कि बात करता है. ना कोई गोवा, कोयला कि कानाफूसी भी करता नजर आता है. ना कोई कभी सरकारी राजपरिवार के बारे में कभी बात भी करता है. क्या भारत निर्माण कि हड्डी ने सबका मुंह बंद कर दिया है?

मैंने कहा अपने पैसों से इनको डाली गई हड्डी से दिल दुःख रहा है? बोला हाँ.

मैंने काफी देर से किसी को भी कोई सलाह नहीं दी थी सो इससे पहले कि मेरे पेट में दर्द हो, मैंने मुफ्त में बहुमूल्य सलाह दे ही डाली, कोर्ट की शरण चला जा, अगर उनको लगता है कि गलत है तो रोक देंगे.

उसने कहा देख भाई, तू सुनता है तो मैं सुनाता हूँ, ये कोर्ट वोर्ट तो मैं तब भी नहीं गया था जब सरकारी युवराज ने मुझे और मेरे जैसे लाखों मेहनतकश लोगों को भिखारी बोला था. और मैं जो बता रहा हूँ वो जब आम आदमी होते हुए मेरे को दिख रहा है तो क्या विपक्ष को और देश के प्रबुद्ध जनों को नहीं दिख रहा? मैं तो अपने बोस के खिलाफ भी जाने से पहले बीस बार सोचता हूँ और फिर कैंसल कर देता हूँ. ये मेरे से नहीं होगा. मैं सब देख लूंगा पर विरोध करने के नाम पे मैं कुछ नहीं करूँगा.

इतनी बातें कर वो तो चला गया और मैं (हालांकि मुझे कोई सिक्योरिटी नहीं है, साइकिल चलाते डर लगता है कब कौन "लाइसेंसधारी" टक्कर मार दे, वेहिकल चलाते पेट्रोल के दामों से डर लगता है, सड़क पर टोल देना होता है, रेल में जाने के लिए धक्के खाने पड़ते हैं और एयरपोर्ट पर जम के जांच होती है, पर मैं -) फिर से खुद को खास समझते हुए अपने काम में मगन हो गया. सच बताऊँ तो मुझे थोडा कम ही पल्ले पड़ा कि वो किस किस चीज से सच में परेशान है और कितना, और क्या उसकी ये परेशानियां जुडी हुई है? और वो अगर इतना ही परेशान है तो कोई उपाय पे काम क्यों नहीं करता?

वैसे आप क्या कर रहे हैं?


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