दिसंबर 26, 2011

मुफ्त सलाह और आम आदमी

वो काफी डरा डरा और सदमे में था.

शकल ठीक ठीक वैसी ही बना रखी थी, जैसे भारत की तथाकथित आजादी के करीब 65 साल बाद भी दूर गाँव का आम शांतिप्रिय भारतीय, जो रोजी रोटी कमाने के लिए भागदौड करता रहता है और उसे अचानक पुलिस स्टेशन बुलाया गया हो. या वैसी जैसी संघ का नाम सुनते ही फर्जी देशभक्तों की हो जाती है.

मैंने पूछा कि क्या बात है भाई, ये क्या हाल बना रखा है?

कहने लगा परेशानी ही परेशानी है, क्या बताऊँ?

मैंने फिर पूछा, वो तो हर किसी को है, अब बताएगा तो तुझे मुफ्त में मेरे जैसे महाज्ञानी की सलाह मिल जायेगी (और कोई माने या ना माने, मैं तो हमेशा से खुद को महाज्ञानी मानता आया हूँ), फिर भी नहीं बताना चाहता और नखरे दिखा रहा है तो दिखाता रह.

मुफ्त का नाम सुनते ही उसकी आँखों में चमक आ गई, और चेहरे पे वातावरण में प्रदूषण की तरह छाया डर और सदमा कम हुआ, वो बोला - यार ये पहले से ही सरकार ने पुंगी बजा रखी है और अब ये नया साल फिर से आ गया और नए नए हमले रुकने का नाम ही नहीं ले रहे.

मैं हल्का सा मुस्कुराने से खुद को नहीं रोक पाया, हाँ ये नया साल तो हर साल आ जाता है, कितनी परेशानी की बात है, और हमले? वो तो हमारे सरकारी कारिंदे बोलते हैं कि जनता की तो आदत हो गई है हमलों की और मरने की. सरकार मस्त, आतंकी मस्त तो तू क्यों जां सुखा रहा है बेमतलब के, हमला हो, मर जाए तो बोलना. तब तक चुप रह.

वो बोला - हाँ, जैसे तैसे इस गुजरते साल के साथ एडजस्ट करके ठीक ठाक ज़िंदा रहना सीखा था, फिर से एक और नया साल आ गया, अब ये ना जाने कैसा रहेगा? और मैं आतंकी हमलों की बात नहीं कर रहा था. मैं तो मीडिया के द्वारा हो रहे हमलों की बात कर रहा था.

मैं थोडा चकराया, और बोला, अरे इसमें क्या परेशानी है, ना जाने कितने मीडिया हाउस और उनके चैनल्स इस दुःख में दुबले हो रहे हैं की आपका नया साल कैसा रहेगा जानिये सिर्फ और सिर्फ हमारे ज्योतिषी की साथ, हमारे चैनल पर, और हमारे चैनल पे ना देखा तो वो दूसरा चैनल वाला तो बता ही देगा, वो नहीं तो तीसरा, नहीं तो चौथा, पांचवां ... और मीडिया के द्वारा कौनसे नए हमले होने लग गए वो तो काफी समय से हो रहे हैं, उनसे क्या घबराना, अब तो काफी लोग जानते हैं की ये नंगे हमें कपडे बेचने की कोशिश कर रहे हैं. फिर भी खुल के बता. ये खुल के का मैंने इसलिए बोला की जब भी, भारत के आम आदमी को अगर आप खुल के बोलने को राजी कर लेते हैं तो आपका मस्त टाइम पास हो जाता है, और वो तो था ही मानो सर्टिफाइड आम आदमी. वो जब भी बोलता था तो कुछ कुछ अपनापन जैसा तो महसूस होता था, पर थोड़ा डर भी लगा रहता था की जाने अब क्या दुखडा सुनाएगा, यु नो ना, पूअर कॉमन मैन ऑफ इंडिया, बेचारा.

हाँ तो उसने कहा - न्यूज चैनल ना जाने क्यों हर कुछ देर में सरकार या उनके आकाओं का गुणगान करते रहते हैं, न्यूज कम दिखाते हैं, पेड न्यूज ज्यादा.

मैं मन ही मन सत्ता पक्ष की तरह चौंका अरे इसे तो अब पेड न्यूज भी समझ में आने लगी है !!

उसने बोलना जारी रखा - ये हमें बताते रहते हैं की कौनसा फलानेवुड का बन्दा या ढिकानेवुड की बंदी अब कहाँ क्या करने वाली है, कैसे करने वाली है, किसके साथ करने वाली है, अचानक उसे ध्यान आया कि उसने "क्या" को रहस्य के आवरण में छुपा रखा है, तो बोला कि इन चैनल वालों का बस चले तो इन फालतू लोगों को चौबीस घंटे लाइव दिखाएँ. कभी डर लगता है कि ना जाने कब डर्टी न्यूज देखने को मिल जाए या पहले जैसे रावण हर जगह आ आ के तंग करता था अब ये कौन टू ना करे. वरना हर जगह कौन टू कौन टू हो जाएगा. उफ़.

बातें मजेदार कर रहा था इसलिए मैंने टोका नहीं. उसने आगे कहा अब बच्चों के चैनल पर विज्ञापन बच्चों के प्रोडक्ट्स के आयें तो समझ आता है पर वहाँ भी मार्केट साबुन बेचता है !! बच्चों को हथियार बना के? ना तो कोई चैनल ये कभी बताता है कि CWG से पहले उसके विरुद्ध न्यूज ना दिखाने के लिए उन्होंने जो विज्ञापन रूपी गाजरें डाली थी वो कितनी असरदार रहीं थी? ना कोई शीला शुंगलू कि बात करता है. ना कोई गोवा, कोयला कि कानाफूसी भी करता नजर आता है. ना कोई कभी सरकारी राजपरिवार के बारे में कभी बात भी करता है. क्या भारत निर्माण कि हड्डी ने सबका मुंह बंद कर दिया है?

मैंने कहा अपने पैसों से इनको डाली गई हड्डी से दिल दुःख रहा है? बोला हाँ.

मैंने काफी देर से किसी को भी कोई सलाह नहीं दी थी सो इससे पहले कि मेरे पेट में दर्द हो, मैंने मुफ्त में बहुमूल्य सलाह दे ही डाली, कोर्ट की शरण चला जा, अगर उनको लगता है कि गलत है तो रोक देंगे.

उसने कहा देख भाई, तू सुनता है तो मैं सुनाता हूँ, ये कोर्ट वोर्ट तो मैं तब भी नहीं गया था जब सरकारी युवराज ने मुझे और मेरे जैसे लाखों मेहनतकश लोगों को भिखारी बोला था. और मैं जो बता रहा हूँ वो जब आम आदमी होते हुए मेरे को दिख रहा है तो क्या विपक्ष को और देश के प्रबुद्ध जनों को नहीं दिख रहा? मैं तो अपने बोस के खिलाफ भी जाने से पहले बीस बार सोचता हूँ और फिर कैंसल कर देता हूँ. ये मेरे से नहीं होगा. मैं सब देख लूंगा पर विरोध करने के नाम पे मैं कुछ नहीं करूँगा.

इतनी बातें कर वो तो चला गया और मैं (हालांकि मुझे कोई सिक्योरिटी नहीं है, साइकिल चलाते डर लगता है कब कौन "लाइसेंसधारी" टक्कर मार दे, वेहिकल चलाते पेट्रोल के दामों से डर लगता है, सड़क पर टोल देना होता है, रेल में जाने के लिए धक्के खाने पड़ते हैं और एयरपोर्ट पर जम के जांच होती है, पर मैं -) फिर से खुद को खास समझते हुए अपने काम में मगन हो गया. सच बताऊँ तो मुझे थोडा कम ही पल्ले पड़ा कि वो किस किस चीज से सच में परेशान है और कितना, और क्या उसकी ये परेशानियां जुडी हुई है? और वो अगर इतना ही परेशान है तो कोई उपाय पे काम क्यों नहीं करता?

वैसे आप क्या कर रहे हैं?


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दिसंबर 16, 2011

विजय और पराजय, क्या सीखा हमने?

व्यंग्य पढ़ पढ़ के आप मेरे ब्लोग्स से परेशान हो चुके हैं तो लीजिए कुछ सीरियस मैटर -


अगर हम आज विजय दिवस मनाते हैं तो हम 20 नवंबर को पराजय दिवस क्यों नहीं मनाते?

हम ये याद क्यों नहीं करते की भारत ने युद्ध और अपनी जमीन दोनों खोई थी|
भारत की खिलाफ युद्ध और भारतीय जमीन पर कब्जा तब रुका जब चाइना ने एकतरफा सीजफायर किया -  20 नवंबर 1962 को|

क्या हम पराजय दिवस इसलिए नहीं मनाते कि हमारे में खुद को आईने में देखने का साहस नहीं है या फिर इसलिए कि जिन लोगों का शासन रहा उन्होंने ऐसा उचित नहीं समझा कि "महान", "सेकुलर" और "बच्चों के सरकारी चाचा" ने नेवी और एयर फोर्स का प्रयोग नहीं किया ये बात हर साल हार के साथ क्यों याद करें?

भारत में सिर्फ नेहरू, गांधी और उनके वंशजों के गुणगान का रिवाज है, उन पर उठने वाले प्रश्न निरुत्तर रह जाते हैं, पूछने वाले के पीछे एक तंत्र पड़ जाता है या फिर अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता यहाँ तक आ के दम तोड़ देती है |

भारत ने गांधी और गांधी के द्वारा उनके चुने गए सत्ता के भोगी जवाहर लाल नेहरू पे पूरा भरोसा कर के क्या पाया? विभाजन और विषम आर्थिक सामाजिक समस्याएँ, जिनके साथ मुस्लिम तुष्टिकरण मुफ्त मिला|

आज हमारा देश जिन समस्याओं से जूझ रहा है वो इन महापुरुषों की ही खड़ी की हुई है, और इनकी राजनीतिक वंशज एक राजनैतिक पार्टी ही इन समस्याओं को आगे बढाने, और खत्म ना होने देने के लिए जिम्मेदार है|

मीडिया वही दिखाता है जो मीडिया हाउस के फेवर में हो या इनके वंशजों के| सच की तलाश और जनजागरण इसीलिए भारत में एक अत्यंत ही दुष्कर कार्य है| खुद से पूछें की आप अपना क्या योगदान दे रहे हैं इसमें?

याद रखें हमें हमारी कमियां देखना और उन्हें दूर करना इसलिए भी जरुरी है की जो देश और समाज अपनी कमियां ना देख कर सिर्फ अपनी उपलब्धियों के ही गुणगान में मग्न रहता है वो समय के साथ नष्ट हो जाता है|

इसलिए हम आज विजय दिवस तभी मनाने का हक रखते हैं अगर हमने 20 नवंबर को पराजय दिवस के रूप में मनाया हो, खुद की कमजोरियों का विश्लेषण किया हो और कुछ सीखा हो अपनी पराजय से|


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दिसंबर 10, 2011

ग्रहण आपका कुछ बिगाड़ेगा या नहीं?

ब्लोगाराचार्य श्रीʰ नरेश के अनुसार ग्रहण के प्रभाव -

अगर अब तक आप मूल्यवृद्धि, रुपये की कीमत में गिरावट, जीवन मूल्यों में गिरावट, ब्लोग्स और सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर केन्द्र सरकार की नजरों से बच गए हैं तो आप निश्चिन्त रहें ग्रहण आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता| पर अगर आप इनमें से किसी की भी चपेट में आ चुके हैं तो ग्रहण के कौनसे शुभ अशुभ फलों की चपेट में आने वाले हैं आप स्वयं देखें -

महिलायें आज सवेरे के काम निपटा कर जहाँ तक संभव हो नित्य की भाँति जितने और जितनी देर तक भाँति भाँति के सीरियल देख सकती हैं देखें, रोज की तरह आपका भेजा खाली हो जाएगा और उसमें ना सुबुद्धि रहेगी और ना दुर्बुद्धि और खाली दिमाग व्यक्ति सदैव खुश और सुखी रहता है.

जो महिलायें कामकाजी हैं वो कम से कम आज तो काम करें और ऑफिस में रोजाना की तरह सात घंटों की बातचीत को कल के लिए टाल दें. सहकर्मियों की चुगली करने पर आज ग्रहण के कारण आपकी चुगली पकड़ी जा सकती है. बोस के सामने रोज की तरह बिना मतलब के दांत निकालना आज विपरीत प्रभाव दे सकता है. आज अपने सास ससुर को रोज की तरह मन ही मन या पीठ पीछे गाली ना निकालें, मजा नहीं आएगा और ऐसा करने से काम वाली बाई एक सप्ताह की छुट्टी ले सकती है. ग्रहण के इन अशुभ प्रभावों से बचने के लिए अपने पसंद की एक दर्जन लिपस्टिक काम वाली बाई को दान करें.

सभी प्रकार के पुरुषों के लिए ग्रहण का प्रभाव शुभफलदायी रहेगा, आज आप छुट्टी ले सकते हैं, जाम से बच सकते हैं, आपको ऑफिस के या घरेलु काम के लिए तले जाने की संभावनाएं ना के बराबर हैं. ग्रहण से पूर्व विशेष 'ठोक योग' बन रहा है, दोपहर दो बजे से दो बजकर तीन मिनट तक आप अपने सहकर्मी या बोस को ठोक सकते हैं, आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा. समयपालन का विशेष ध्यान रखें.

आज दिन में यथासंभव सुरापान टालें वरना पिछले सप्ताह की तरह फिर से आपकी ठुकाई हो सकती है.

शाम को दारू क्रिया शुरू करने से पहले अपने पसंद के नेता को गाली दें और खत्म करने के बाद चिलम संडे या कन्नी लेऑफ का मन ही मन ध्यान करें, और कोशिश करें की पहले पैग और आखिरी पैग लेने के बीच अंतर मात्र दस मिनट का हो, अन्यथा बहुत अशुभ फल मिल सकते हैं.

अब राशियों को देखा जाए -

मेष - राशि तो ठीक है, फल अपने मेंढे जैसे दिमाग को कैसे प्रयोग में लाते हैं इस पर निर्भर करता है. आज नहाते समय सिर्फ नहाएं.

वृष - ही ही ही, क्या राशि है. खैर, आज ग्रहण का पूरा फायदा आप उठा सकते हैं, मॉल से सामान उठाते हुए आपको कोई कैमरा नहीं देखेगा, बस कोशिश करें की माल पार करते समय उत्तर पूर्व दिशा में मुंह रखें.

मिथुन - आज अपने दिमाग को आराम दें और राशिभ्रंश को अपने दिमाग से निकाल दें. आज आपके द्वारा की गई ट्वीट आपको परेशानी में डालेगी.

कर्क - राशिगत आदत छोड़ें आज के लिए और दिन भर चैन से रहें और सबको रहें दें. शाम को ससुराल पक्ष के लोग आ सकते हैं सप्ताह भर घर रहने के लिए. बधाई हो.

सिंह - इस जन्म में मानव हैं इसलिए मानव स्वभाव अपनाएं. आज आपके प्राइवेट फोल्डर आपकी गलती से पब्लिक हो सकते हैं और सप्ताह बीतते बीतते आपको उनकी सीडी मार्केट में मिल जायेगी. बचने के लिए अपनी कम्प्यूटिंग डिवाइस पानी में डाल दें.

कन्या - अगर आपको समझ नहीं आ रहा की क्यों लोग आपके आस पास चिपके रहते हैं तो जान लें की ये राशि का ही चमत्कार है. आज स्वयं किसी भी अकाउंट में लोगिन ना करें, पास में जो भी दिखे उसे यूजरनेम और पासवर्ड बता कर उससे लोगिन करवाएं.

तुला - कीतना कम तोला रे कालिया? आज ऑफिस या घर में कोलावेरी गाना जोर जोर से बजाएं और हो सके तो साथ में डांस भी करें. गुप्त चिंताओं को गुप्त ही रहने दें. लिफ्ट से नीचे जाते समय तीसरे फ्लोर पर रुक कर तीन मिनट वहां बैठ कर ही ग्राउंड फ्लोर पर जाएँ.

वृश्चिक - आठवीं और सबसे खतरनाक राशि. आज डंक मारने पर काबू रखें, वरना पार्किंग में जगह नहीं मिलेगी और डिक्की भी भूल से खुली रह जायेगी. बचने के लिए मोबाइल को फुल चार्ज रखें, और केन्द्र सरकार की आलोचना ना करें, भले ही आपको लग रहा हो की धुलाई के बाद आपकी चड्डी नहीं सूखी उसमें केन्द्र सरकार के बिगडैल मंत्रियों का हाथ है.

धनु - अब तेरा क्या होगा रे धनु ? आज आपको आपके छोटे छोटे बच्चे (अगर हैं तो) सवेरे सवेरे पीटेंगे, फिर बीबी का नं. आएगा, बाहर निकलते ही पक्षी आप पर ... और फिर शाम तक हर जगह आपकी ... होगी, पर अच्छी बात ये है की आप इन सबका बुरा नहीं मानेंगे.

मकर - आज आपकी भारत सरकार जैसी मोटी खाल की प्रशंसा होगी, कि किस तरह आप हर वो चीज हंसते हंसते झेल जाते हैं जिसमें बाकी लोगों को बाकी लोगों की वो याद आ जाती है. अरे वो मतलब नानी. पूरा दिन शुभ बनाने के लिए सवेरे घर से बाहर निकलते ही जो दिखे उसे जोर जोर से जम के गालियाँ निकालें.

कुम्भ - आज अगर फ्रेंड को या घरवाली को मूवी नहीं दिखाई तो हाथ धो बैठोगे, पहले केस में उससे ही और दूसरे केस में बर्तन धोने के बाद. उपाय के लिए सफ़ेद टोपी लगा के गन्ना चूसें.

मीन - आपके भौतिक शरीर में सुरा और पानी का बैलेंस बिगड़ चुका है, आज नीट लें और शुभफल प्राप्ति हेतु बारटेंडर या वेटर को 12345.50 रूपए की टिप दें. शाम को घर लौटते समय एक मिनट तक बिल्डिंग के गेट पर रुक कर निरंतर होर्न बजाकर या चिल्लाकर ही प्रवेश करें.

अंतत: सभी से मेरा कहना है की आज और आज के बाद भी शुभफल प्राप्त्यार्थं मेरे ब्लॉग पढते और पढाते रहें इससे अशुभ हटेगा और सायबर और असायबर शक्तियों की कृपा मिलाती रहेगी. श्रद्धानुसार लाइक पर क्लिक करें और कमेन्ट दें.


( ʰ - गिनती की कोई जबरदस्ती नहीं है, श्री आप जितने लगाने चाहें अपनी श्रद्धानुसार स्वयं लगा लें )




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दिसंबर 02, 2011

लोकपाल का दायरा



सब गुत्थम गुत्था हो रखे थे ।

इसे हमारे दायरे में लाओ, हमें इसके दायरे से निकालो, अरे इसमें दलित तो है ही‌ नहीं, अरे मुस्लिम वर्ग के प्रतिनिधी कम हैं, हद है ठाकुर इतने कम? अरे पिछडा वर्ग छूट गया, ये क्या है? अगडी जाति वालों ने किसका बटेर चुराया है हम 50% से कम पर नहीं मानेंगे ...

कुल मिला कर सब चिल्ला चिल्ला कर बता रहे थे कि वो किस तरीके की राजनीती के कांधे चढकर ऊपर उठे हैं। ये बात अलग थी कि ये अब इतने ऊपर उठ गये थे कि इनको ऊपर उठाने वाले कांधे ही चार कांधों के मोहताज होने वाले थे।

कन्फ़्यूजियाइये मत, बात लोकपाल की हो रही थी और नक्कारखाने को मूर्त रूप देने वाले लोग और कोई नहीं आदरणीय (ये मैं सिर्फ़ विशेषाधिकार हनन का नोटिस ना मिले इसलिये लगा रहा हूं) सांसद थे ।

सालों (मन तो कर रहा है गाली देने का पर यहां सालों = years है) साल तडपा तडपा कर आखिर लोकपाल आखिर आ ही गया। पर इस दायरे दायरे के खेल में हुआ ये कि भ्रष्टाचार लोकपाल के दायरे से बाहर था और लोकपाल लोक के।

भले ही खुद के दांत नकली हों और नख कागज से रगड खा के टूट जाते हों पर लोकपाल नखदंत विहीन है या नहीं इसे सिद्ध करने में लोग महंगाई भूल कर जुटे थे, मानों उनके, जो वो सिद्ध करना चाहते हैं वो सिद्ध करते ही, सरकार अगले पद्म सम्मान के लिये अपने चाटुकारों या खबरियों और उंगलीबाजों की जगह उनको ही चुन लेगी।

अब परेशानी लोकपाल चुनने की थी। सर्वदलीय बैठकों में (वो जो दिन में होती हैं वो नहीं, वो जो छिप कर होती हैं वो) तय किया गया कि तुम्हारे राज्यों में हमारे लोकपाल और हमारे राज्यों में तुम्हारे लोकपाल।

जनता खुश, जनता खुश होने का कोई मौका छोडती है क्या? लोकपाल ने काम करना शुरू किया और पता लगा कि पहले एंटी करप्शन वाले भी इससे अच्छा काम करते थे।

कुछ लोग अभी भी आस लगाये बैठे हैं कि भारत से एक दिन भ्रष्टाचार खत्म होगा।


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एक गांव की कहानी - भाग तीन

भाग एक और भाग दो से आगे . . .

इतिहास अपने आप को दोहराता है।

वहीं से शुरु करते हैं जहां कहानी को छोडा था।

प्रधान और ठकुराईन ने इस बीच ये मानते हुए कि गांव में जो तोलता है कम तोलता है और हमेशा ही महंगे भाव बेचता है, दूसरे गांवों से बडे बडे दुकानदारों को गांव में दुकानें खोलने के लिये बुला लिया। जबकि वास्तव में वो अपना लालच और हिस्सा छोड देते तो महंगाई तुरंत कम हो जाती।

लोग पहले से ही परेशान थे, काफ़ी लोगों ने, जिनमें बडी संख्या दुकानदारों की और दुकानदारों द्वारा प्रायोजित भीड की थी, गलियों में खूब चिल्ल पों मचाई। पर प्रधान और मंडली ने रात्रिदमन कांड के समय देख लिया था कि इन चनों में भाड फोडने का दम नहीं है इसलिये वो इन सब घटनाओं के मजे लेते रहे।

कुछ पंचों ने जब विरोध किया तो पहले तो उनको भाव नहीं दिया, फिर उन पर पंचायत में चल रहे मुकदमों का डर और कुछ थैलियां दिखाई जिनके हिलने पर खन खन की आवाज आती थी।

इसके बाद विरोध करने वाले पंचों ने विरोध ठीक उसी तरह किया जैसे नई नवेली दुल्हन सुहागरात को करती है। गांव की गलियों मे हल्ला गुल्ला करने वालों को धर्म और जाति के नाम पर बांट दिया गया और वो क्या करना था ये भूल कर एक दूसरे को खुशी खुशी मारने काटने में जुट गये।

इस बीच पडोस के गावों में कुछ घटनायें घटीं जिनका आसानी से अनुमान लगाया जा सकता था और जिन्होनें दूरगामी परिणाम दिखाये।

पास में एक गांव था जहां ना जाने कैसे पौधे उगाये गये थे कि वहां के लोग मानवभक्षी हो गये थे। उन पर नकेल कसने को और बाडाबंदी करने को जब दूसरे गांवों के लोगों ने कोशिश की तो बढते खर्चों ने उनका रास्ता रोक दिया।  हालांकि वहां के प्राकॄतिक साधन ललचाते थे फिर भी ये घाटे का सौदा लगने लगा। इस बीच प्रधान के गांव और पास के गांव के बीच तालाब में खुदाई करने को लेकर हल्की गर्मागर्मी हुई जिसे मानवभक्षी गांव के लोगों ने बीच में कूद कर युद्ध का रूप दे दिया। दूसरे गांवों के लोगों ने सब पक्षों को खूब हथियार बेच कर मोटा मुनाफ़ा कमाया और अपनी अपनी बर्बाद हुई अर्थव्यवस्था में नई जान डाल ली।

युद्ध का परिणाम क्या रहा?

चूंकि प्रधान के गांव के लोगों ने अपना सारा चिंतन मुद्रा और मुद्रा की दुनिया तक सीमित कर रखा था इसलिये उनके कभी दिमाग में ही‌ नहीं आया कि मानवभक्षी गांव का और तालाब के समीप गांव का गठजोड उनके कितना खिलाफ़ जा रहा है। युद्ध कब उत्कर्ष लाते हैं, ये युद्ध भी अपवाद नहीं था। इसका परिणाम ये निकला कि ये बहुत लंबा चला, धीरे धीरे ये सब गांवों में फ़ैल गया, गुट बन गये और एक दूसरे पर जम कर हमले किये गये। सबसे ज्यादा नुकसान प्रधान के गांव को झेलना पडा। युद्ध में उपयोग में लाये गये हथियारों ने गांव की आधी आबादी को और आधी से ज्याद जमीन का उपजाऊ होना खत्म कर दिया। पचास साल बाद आज टुकडों में बंटा प्रधान का और मानवभक्षी लोगों का गांव दूसरे पडोस के गांवों द्वारा शासित होता है।

बहुत कहानी हो गई, इस कहानी के हिसाब से अभी‌ जो समय गुजर रहा है उसमें मुख्य चुनावों से ठीक पहले हमारे प्यारे प्रधान गुट द्वारा अल्लाह हो अकबर और हर हर महादेव के नारे लगवाये जायेंगे। क्या आप तैयार हैं? ना ना उसके लिये 14 का इंतजार नहीं करना पडेगा आपको, जब हमारे प्यारे रात्रिशक्तिदिखाऊ निरपराधपीटक बेगुनाहहड्डीतोडक लुंगीधारी केंद्रीय मंत्री और परम आदरणीय विमानयात्राजांचमुक्त अद्भुतसंपत्तिउत्पाद्क गांव के सब चरणलोटन मानवों के प्यारे दामाद जी तिहाडधाम प्रस्थान करने वाले होंगे तब, अब आगे आप सोचिये कब.

कथा समाप्तं।


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