tag:blogger.com,1999:blog-86803439497488528322024-02-19T22:25:08.011+05:30बाहर की बातNareshhttp://www.blogger.com/profile/15461285128594088471noreply@blogger.comBlogger21125tag:blogger.com,1999:blog-8680343949748852832.post-12185931364800021272013-04-25T09:59:00.002+05:302013-04-25T10:01:46.924+05:30क्यूँ मर रहा है बे? क्रिकेट है ना !!<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgl12K5iiZmt3TaGqsubqOCOFVsZHX3CpdWzszpNfI0-sLNuMh65wMo2_5bcVNpc63OdrfuvTrNBYSaw-STveUyftDPtKRPtydWlDdfpsrcD3XRE-OZJqD_5BYGfJ_FYQ33ozhIx6eAfszu/s1600/beni.jpg" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="240" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgl12K5iiZmt3TaGqsubqOCOFVsZHX3CpdWzszpNfI0-sLNuMh65wMo2_5bcVNpc63OdrfuvTrNBYSaw-STveUyftDPtKRPtydWlDdfpsrcD3XRE-OZJqD_5BYGfJ_FYQ33ozhIx6eAfszu/s320/beni.jpg" width="320" /></a></div>
<span style="font-size: large;"><b> </b><b>भा</b></span>रत सरकार में बैठे लोगों जैसे क्रांतिकारी ना तो आजतक देखे गए हैं और ना ही शायद देखे जायेंगे ... इनके पास हर समस्या का इलाज है, इनके नजरिये से भूतकाल की समस्याओं का समाधान -<br />
<br />
ज्यादा पीछे ना जाकर १८५७ से शुरू करते हैं खबर यूँ होती -<br />
<br />
"अंग्रेजी लूटमार" टीम और भारत के "राजे राजवाडा लूटमार" टीम में देश की समस्याएँ सुलझाने के लिए क्रिकेट लीग जल्द ही शुरू होगी तब तक सभी लोग शान्ति से रहते हुए लगान समय पर देते रहें भले ही खुद के खाने के दाने ना हों!<br />
<br />
<b>१९१४</b> -<br />
ऑस्ट्रिया के उत्तराधिकारी की हत्या से उपजे विवाद के समाधान के लिए वो सर्बिया के साथ क्रिकेट की टेस्ट सीरिज खेल रहा है. रूस, फ्रांस, ब्रिटेन और जर्मनी ऑस्ट्रिया और सर्बिया की टेस्ट सीरिज में शामिल हुए, खेल के लिए नए स्टेडियम एशिया और अफ्रीका में तलाशे जा रहे हैं <br />
<br />
टर्की और अमेरिका ने भी अपने खिलाड़ी टेस्ट सीरिज में भेजे, नए मैचों की संख्या बढती ही जा रही है <br />
<br />
<b>१९१९</b>-<br />
टर्की में अंग्रेजों और वहां के निवासियों के बीच खलीफा क्रिकेट सीरिज शुरू.<br />
<br />
मोहनदास गांधी ने टर्की के समर्थन में भारत में भी अंग्रेजों के साथ खिलाफत क्रिकेट सीरिज शुरू की जिसमें नोआखाली एवं अन्य स्टेडियम में दंगे भड़कने से हजारों लोग जिनका क्रिकेट से कुछ लेना देना नहीं था, मारे गए <br />
<br />
इसी क्रम को जारी रखते हुए वर्त्तमान में आते हैं ... <br />
<br />
<b>२०१३</b><br />
चीन ने भारत की जमीन हथियाई, राजीव शुक्ला भारी मात्रा में क्रिकेट प्रशिक्षक लेकर चीन रवाना वो वहां क्रिकेट खेलना सिखायेंगे फिर भारत चीन को तगड़ा वाला सबक सिखाएगा ...<br />
<br />
<b>आप महंगाई से परेशान हैं?</b><i><b> </b>क्रिकेट खेलिए </i><br />
<b>आप अपराधों से परेशान हैं?</b> <i>आप झूठ बोल रहे हैं, देखिये आईपीएल कितना "स्मूदली" जा रहा है किधर हैं अपराध कहाँ है अपराध?</i><br />
<b>किसान आत्महत्या कर रहे हैं</b>! <i>अबे किसान क्यूँ मर रहा है? क्रिकेट है ना देख उसे!!</i><br />
<br />
<hr />
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Nareshhttp://www.blogger.com/profile/15461285128594088471noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8680343949748852832.post-23341902373837225042012-09-06T21:00:00.000+05:302012-09-06T21:01:24.479+05:30मारा रे ...आबिद को शेरो शायरी का भूत चढ़ा.<br />
<br />
उसने एक दो हाहाकारी शेर लिख डाले इधर उधर से
माल चपका के और तय किया की जुम्मे की नमाज के लिए जब सब साथी इकट्ठे होंगे
तो वहीँ अचानक इनको सुनायेगा ...<br />
<br />
जुम्मा आया, आबिद दोपहर में नमाज के लिए गया और सब साथी दिखते ही वो इमोशनल और रोनी सूरत बनाने की कोशिश करता हुआ बोला - <b>मारा रे ...</b><br />
<br />
ये
सुनते ही <b>रिलिजन ऑफ़ पीस</b> (<span style="color: red;">?</span>) के <b><i>शांतिदूत</i></b> बाहर निकल के दंगा करने लगे, दुकानों को शांतिपूर्वक तरीके से लूट के आग लगा दी, राहगीरों को सद्भावना के साथ
लूट के चाक़ू और डंडे मारे, वाहनों को मासूमियत के साथ आग के हवाले किया और
महिलाओं के साथ आदर के साथ जितना संभव बन पडा अभद्रता और बलात्कार किये.<br />
<br />
उधर
आबिद? उसको "मारा रे ..." के आगे किसी ने सुना ही नहीं, फिर भी वो अकेला
बैठा बैठा बोला - <b>"मारा रे ... तेरी आँखों ने मुझे मारा रे "</b>
<br />
<br />
<hr />
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Nareshhttp://www.blogger.com/profile/15461285128594088471noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8680343949748852832.post-39499360747325240572012-09-01T08:06:00.000+05:302012-09-01T08:07:34.757+05:30नीली पगड़ीओ नीली पगड़ी वाले<br />
<br />
मगरमच्छ की है खाल या गैंडे की? किसकी है तेरी खाल?<br />
असर ही नहीं होता किसी भी चीज का !!<br />
धूल जो जमे तो कोई न कोई कैमरा वाला साफ़ करने भी आ जाता है<br />
ओ नीली पगड़ी वाले<br />
<br />
सदन का बहुमत कैसा था ये खरीदा हुआ चमत्कार<br />
यहाँ लोकतंत्र था बेअसर<br />
बस एक ही था तंत्र - विदेशी अम्मी तंत्र <br />
ओ नीली पगड़ी वाले<br />
<br />
लेकिन तेरा मुंह जो है उसपे खाल या तो नहीं है या काली पड़ चुकी है<br />
ओ कोयले से काले कव्वे हंस सी तेरी चाल नहीं है<br />
मुंह तो तेरा कब का काला हो चुका था<br />
आइना बस राय ने दिखाया है<br />
ओ नीली पगड़ी वाले<br />
<br />
शर्मो हया तो तूने बेच खायी <br />
देश की धरती दुश्मनों को देते भी तुझे लाज न आयी<br />
बत्तीस रुपये के आंकड़ों से खेल खेल के<br />
आमजन की सांस रोकने वाले<br />
<br />
इस नीली पगड़ी वाले को पैदा ही क्यों किया<br />
ओ <span style="color: blue;">नीली छतरी</span> वाले !!<br />
<br />
<br />
<br />
<hr>
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</div>Nareshhttp://www.blogger.com/profile/15461285128594088471noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8680343949748852832.post-22854192407819697552012-04-24T10:18:00.000+05:302012-04-24T10:27:50.029+05:30भारत सरकार बनाम माइनो परिवार का रामू काकाgoogle जिसका आइडिया दो डेवलपर्स को स्टेनफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी के एक प्रोजेक्ट पे काम करते समय 96 में आया जिसे NSF फ़ंड दे रहा था ( यही सारी फ़ेडरल एजेंसीज को फ़ंड देता है, और ध्यान रहे आज उसके पास आपकी सभी सूचनाओं का एक विशाल डेटाबेस है), शुरूआत में google google.stanford.edu पर पाया जाता था।<br />
<br />
1997 में google.com डोमेन रजिस्टर करवाया गया और 1998 में एक मित्र के गैराज से Google Inc. शुरू की गई।<br />
<br />
तब से लेकर अब तक ये एक बैकबोन बन चुकी है, ये आपके बारे में लगभग सभी सूचनायें रखती है, आपके मेल्स, आपके द्वारा विजिटेड साइट्स से लेकर आपके और आपके सर्किल के लोगों के नाम, नंबर, etc. etc.<br />
<br />
गूगल और फ़ेसबुक जैसी साइट्स पे उपलब्ध सूचनायें फ़ेडरल एजेंसीज के साथ साझा की जाती है। खैर ये सब हुई बेमतलब की बातें, अब मजेदार बात पे आते हैं कि कैसे ये इसकी भी जय जय, उसकी भी जय जय कर के हर जगह अपना कारोबार चलाता है, सिर्फ़ इन तीन स्क्रीन शोट्स पे नजर डालें, जो कि गूगल इंडिया, गूगल चाइना और गूगल.कोम से लिये गये हैं -<br />
<br />
गूगल इंडिया - J&K और भारत की सीमाओं पे ध्यान दें<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVQ67JBOqArlZfD1I9QY5CGXltJ4S6yPwejTcfhmE0dGG9q12zFE-soNhzNypOmo9G2ukcbmH9EBsYG-lWRjNM8w3DMnnYeCSVocaaCjWkaM6-7gIdwuC8QKL8SslBH72A45pYNTXLj9Rs/s1600/maps_india.png" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="320" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEgVQ67JBOqArlZfD1I9QY5CGXltJ4S6yPwejTcfhmE0dGG9q12zFE-soNhzNypOmo9G2ukcbmH9EBsYG-lWRjNM8w3DMnnYeCSVocaaCjWkaM6-7gIdwuC8QKL8SslBH72A45pYNTXLj9Rs/s640/maps_india.png" width="640" /></a></div>
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दूसरा स्क्रीन शोट है - गूगल चाइना - J&K और चाइना की सीमारेखा पे ध्यान दें -<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiehYWnLoBNqN2xReyg2XwZlSIf-0fptcPY0mwXql9QDartscAE6ZO34BhSx834MfSeV3AkLE7FMP4PPgR39iVihaycnNPpmsjwm49D0MZrl1nKJiVu1rdsL3wJsE5mSjWipL1YzKytT4mA/s1600/google+china.png" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="329" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEiehYWnLoBNqN2xReyg2XwZlSIf-0fptcPY0mwXql9QDartscAE6ZO34BhSx834MfSeV3AkLE7FMP4PPgR39iVihaycnNPpmsjwm49D0MZrl1nKJiVu1rdsL3wJsE5mSjWipL1YzKytT4mA/s640/google+china.png" width="640" /></a></div>
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तीसरा स्क्रीन शोट है गूगल वर्ल्ड का या google.com का - पिछली अंतर्राष्ट्रीय सीमा रेखाओं से इसकी तुलना करें -<br />
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
<a href="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj0PrbtclXx-djz0b8uhaZAqdTzH0LuQBedoO_5nsjDWEBQBg42vr8-A4wimEyKaDxYLEA90Low5l8G8VmdK-kzMifMKrkZVDMCBu4qRjfLAQwweu2MWrR5QrW8_oq3wehyphenhyphenI7L4L-_T7RM2/s1600/maps_com.png" imageanchor="1" style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img border="0" height="322" src="https://blogger.googleusercontent.com/img/b/R29vZ2xl/AVvXsEj0PrbtclXx-djz0b8uhaZAqdTzH0LuQBedoO_5nsjDWEBQBg42vr8-A4wimEyKaDxYLEA90Low5l8G8VmdK-kzMifMKrkZVDMCBu4qRjfLAQwweu2MWrR5QrW8_oq3wehyphenhyphenI7L4L-_T7RM2/s640/maps_com.png" width="640" /></a></div>
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<b>आया कुछ समझ में कि बिजनेस कैसे किया जाता है? या विशेषकर भारत जैसे देश खुद को कैसे दिन में भी अंधेरे में रखते हैं?</b> भारत सरकार को अपने मंत्रियों की सेक्स सीडियों से निपटने से फ़ुर्सत मिले, मीडिया को खुद के घोटालों पे ना बोलने के लिये पटाये रखने से फ़ुर्सत मिले, देश के लिये उठने वाली आवाजों को दबाने से फ़ुर्सत मिले, इटली की गुलामी से फ़ुर्सत मिले तब तो भारत सरकार भारत के लिये सोचे कुछ करे, पर अफ़सोस कभी तो ये खुद को सर्वशक्तिमान समझने वाली सरकार कोर्ट को हलफ़नामा देकर कहती है कि राम काल्पनिक थे और कभी कोर्ट को कहती है कि इटली के जिन नाविकों ने भारतीय मछुआरों की हत्या की उनको पकडने का केरल सरकार या भारत को अधिकार नहीं !!!<br />
<br />
<b style="color: red;">ये भारत सरकार है या माइनो परिवार का रामू काका?</b>
<br />
<hr />
<div style="color: red; font-family: Arial,Helvetica,sans-serif;">
(c) Naresh Panwar. I am sharing this blog post with Creative Commons no-deriv, no-commercial license. मेरी सारी ब्लोग पोस्ट को किसी भी डिजिटल या प्रिंट मीडिया में बिना लिखित परमिशन के पब्लिश या ब्रोडकास्ट की अनुमति नहीं है, पर इस ब्लोग पोस्ट "भारत सरकार बनाम माइनो परिवार का रामू काका" को आप प्रिंट या डिजिटल मीडिया पर जो कि कमर्शियल ना हो में शेयर कर सकते हैं, मुझे कोई आपत्ति नहीं है।
</div>
<hr />
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Nareshhttp://www.blogger.com/profile/15461285128594088471noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8680343949748852832.post-48283391916892043322012-04-04T20:04:00.001+05:302012-04-04T20:06:31.543+05:30चलाचल बाबा और मुन्नू<br />
आजकल फ़ेशकुब पे और बला की लोगिंग पे चलाचल बाबा पे टिप्पणियां करने का फ़ैशन है, मैं कुफ़ैशनेबल क्यों रहूं? मैं सोच रहा हूं कि अगर अपने मुन्नू चलाचल दरबार में जायें तो उनकी क्या परेशानी होगी जो वो माइक ले के बतायेंगे?<br />
<br />
कल्पना के घोडे दौडने शुरू हो गये हैं तो आपको भी सवारी करवा ही देता हूं -<br />
<br />
मुन्नू: बाबा के चरणों में कोटी कोटी प्रणाम<br />
<br />
चलाचल बाबा हाथ उठा के मुस्कुराते हैं।<br />
<br />
मुन्नू: बाबा मैं पहले विश्व बैंक के लिये काम करता था, उनके कहने पर भारत बेच दिया तो तीनेक लाख की हर महीने पेंशन मिलती थी, पर मेरा स्विस वगैरह में कोई अकाउंट फ़िर भी नहीं था, मैं बडा कुंठाग्रस्त था, कोई काम नहीं आता था फ़िर एक दिन अचानक से कुछ ना आने के कारण ही प्रधानमंत्री बना दिया गया मुझे, सब ठीक चल रहा था बाबा कि अचानक ही सब मेरा मजाक बनाने लग गये हैं, पद छोडने का बोलते हैं, मैडम भी बोलती हैं कि मेरा छोरा आवेगा गद्दी खाली कर, मैं बहुत परेशान हूं क्या करूं बाबा ?<br />
<br />
चलाचल बाबा: पिछली बार सच कब बोला था?<br />
<br />
मुन्नू : बाबा बस अभी जब माइक पे आपको समस्या बताई तब बोला था।<br />
<br />
चलाचल बाबा: नहीं उससे पहले कब बोला था?<br />
<br />
मुन्नू: बाबा उससे पहले तो मैं मेरी शादी के समय घबरा के कभी बोला था पर उस बात को तो तीसेक साल हो गये होंगे<br />
<br />
चलाचल बाबा: अच्छा तू करता क्या है?<br />
<br />
मुन्नू: करता तो कुछ नहीं, पर-धन-मंत्री हूं, सब अपना अपना धन कमायें ये चुपचाप देखना होता है<br />
<br />
ये कह के मुन्नू आगे बोलते बोलते एकदम से चुप ...<br />
<br />
चलाचल बाबा: आगे बोल बेटा, बोलते बोलते रुक क्यों गया?<br />
<br />
मुन्नू चुप<br />
<br />
बाबा: अरे आगे बोल, और क्या करता है?<br />
<br />
मुन्नू घबराता हुआ: बाबा मैं इतना बोल गया ये ही काफ़ी है, मुझे किसी भी टोपिक पे किसी भी मैटर पे बोलने से मैडम ने मना कर रखा है और कह रखा है कि अगर ज्यादा ही जरूरत हो तो बस इतना ही बोलना कि "मुझे इस बारे में पता नहीं" या "मैं इस बारे में नहीं जानता" या "ठगबंधन की मजबूरी है" या "देखेंगे"<br />
<br />
बाबा: बस इसीलिये <b>तेरी रुक रही है</b>, जा जाकर अपने <b style="color: orange;">ठगबंधन</b> के ठगों के नाम और उनके कारनामे देश को बता दे और देख तुझे तेरी खोई (खोई कहते हुए बाबा के होठों का एक किनारा उठ गया) इज्जत कैसे वापस मिलती है, देश वाले कैसे तुझे सर आंखों पे बिठाते हैं, जा जाकर सच बोल।<br />
<br />
मुन्नू हां बाबा बोल कर सर झुकाये लौट आया पर चलाचल बाबा ने जो करने को बोला था उसके लिये ना जाने उसने मैडम से परमिशन ली है के नहीं, शायद परमिशन नहीं मिली क्योंकि हमें अभी तक सच सुनने को भी नहीं मिला।
<hr />
<div style="color: red; font-family: Arial,Helvetica,sans-serif;">
(c) Naresh Panwar. All rights reserved. Distribution in any media format, reproduction,
publication or broadcast without the prior written permission of the Author may lead you to face legal actions and penalties.
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<br />
चलिये इस आम आदमी को छोड के आगे देखते हैं -<br />
<br />
शक संवत को 'फ़ोलो' करने वाले महान सभ्यता के वंशजों के इसपे आधारित पंचांग आदि को शक की निगाह से देखने के कारण तिथी वगैरह का तो पता नहीं पर हां कैलेंडर के हिसाब से कोई सन् २०१०-२०२० के आसपास का समय रहा होगा।<br />
<br />
भारत काफ़ी प्रगति कर चुका था। सरकारें सुनिश्चित कर चुकी थीं कि चार्वाक दर्शन को आगे बढाया जाये, इसके लिये उनके थिंक टैंकों ने दिन रात कमेटियों पे कमेटियां बना कर (अरे! दिन रात का गलत प्रयोग हो गया, अभी भूल सुधार करता हूं), और दिन रात टीए डीए उठा कर नई नई स्कीमें बनाई थीं जिनके नाम के आगे और पीछे किसी ना किसी तरह से 'गांधी' लगाकर सुनिश्चित किया गया कि नाम सुनते ही पता चल जाये कि ये योजनायें और स्कीमें कोई काम की नहीं हैं।<br />
<br />
इनमें से कुछ स्कीमें तो आपको घर बैठे रोजगार देती थीं, बस आपको एक सरकारी कागज पे अपना अंगूठा या हस्ताक्षर करने होते थे और मिलने वाली रकम का कुछ हिस्सा बांटना पडता था, मिल बांट के खाने का ऐसा अद्भुत शिक्षण प्राप्त करने के लिये कई विदेशी भी दौरा कर चुके थे पर उनको दौरे में ये सब देख के दौरों के सिवाय कुछ भी नहीं मिला। बेचारे, च च च । और हां आपने घर बैठे रोजगार प्राप्त कर लिया तो इसके बाद कुछ खाना पीना भी है कि नहीं? इसके लिये एक अलग स्कीम थी जो आपके खाना पीने का बंदोबस्त करने के लिये लाई गई थी और आपको घर बैठे (ठीक पहले वाली स्कीम की तरह ही) खाना पीना दिलाती थी। क्या? मिल बांट के? हां वो तो सारी योजनाओं का अभिन्न अंग ही था, इसके बिना कैसा विश्वबंधुत्व?<br />
<br />
सो लोगों के पास खूब समय हुआ करता था और वो इस समय को अपने अपने तरीके ठिकाने लगाया करते थे, कुछ लोग जो अभी तक 'सोशल' नहीं हुए थे, कई लोगों के साथ गपबाजी करते हुए, चौपाल पे या कहीं भी दिनकटी करते थे हांडी वगैरह लगा के और जो 'सोशल' हो गये थे वो अपने कमरे में अकेले बैठ के 'सोशल साइट्स' पे कई लोगों के साथ गपबाजी करते हुए खुद को प्रोफ़ेशनल 'समझदार' दिखाने के तनाव भरे काम का जितनी देर हो सके निर्वहन करते थे । हां ये दूसरे वाले 'सोशल' लोगों को इन योजनाओं की पूरी जानकारी नहीं होती थी, पर उनको लगता था कि मानों उन्होनें इन पर और विश्व के किसी भी मुद्दे पर ज्ञान का प्रचार प्रसार करने का टेंडर छुडा रखा है और साल बीतते बीतते टारगेट पूरा करना है।<br />
<br />
बाकी? बाकी शास्त्रीय संगीत सुनते थॆ सीरियल्स के बैकग्राउंड में आने वाले, सूअर की चर्बी से बनी क्रीम लगा के गोरे होते थे और दिन भर एड्स (मेरा मतलब एडवरटाइजमेंट्स) देखते थे, जिनमें से हरेक एड का आश्चर्यजनक तरीके से एक ही संदेश होता था कि 'लडकी पट जायेगी', हमारी कंपनी की चड्डी - पहनो लडकी पट जायेगी, हमारी कंपनी की शेविंग क्रीम काम में लो - लडकी पट जायेगी, हमारी चिप्स खाओ - लडकी पट जायेगी, कुल मिला के बडा लोकतांत्रिक माहौल था, बस हमारे ब्रांड का प्रोडक्ट काम में लो - लडकी पट जायेगी, अरे अपने आप आपके पास आयेगी।<br />
<br />
मानो ये एड जो लोग दिन भर धूप तक ना देखने के बाद भी सरकारी स्कीमों का फ़ायदा ना उठा पा रहे हों क्योंकि उनकी आमदनी सरकारी 32 रुपये की रेखा से सैकडॊं या हजारों गुना ज्यादा है, उनको जीवन का ध्येय दे रहे हों।<br />
<br />
दूसरी तरफ़ इन सब से अनजान किसानों का लागत मूल्य बढता जा रहा था और किसान की आत्महत्या को अब मीडिया खबर तक नहीं समझता था। प्राकॄतिक संसाधन बेच के खाये जा रहे थे, आतंकियों के लिये सरकार के मंत्री बोलते थे कि हमने गुपचुप उनका हाथ थाम रखा है और चुनाव से पहले आम आदमी के पैसे से इसी मीडिया में बेशर्म सरकार और जनता को भिखारी बोलने वाले, थोपे गये सरकारी राजपरिवार के लिये, ना जाने किसके निर्माण के गाने बजाये जाते थे !!<br />
<br />
<br />
<hr />
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(c) Naresh Panwar. All rights reserved. Distribution in any media format, reproduction,
publication or broadcast without the prior written permission of the Author may lead you to face legal actions and penalties.
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<br />
चौबे जी को अपने एन.जी.ओ. में फंड में कमी आती महसूस हुई. तुरंत कोढ़ कमिटी कि मीटिंग बुलाई गई. <br />
<br />
कोढ़ कमिटी कि ज्यादातर मीटिंग सेफ्टीगन पिद्दी में होती थी. वो एक छोटा सा कस्बानुमा गाँव था जो था तो भारत में पर जैसे हिंदू माइनोरिटी होते ही उस जगह शरिया आ धमकता है भले ही वो हिस्सा भारत में हो उसी तरह इस सेफ्टीगन में भी राज एक एन.जी.ओ. चलाने वाले चौबे जी का चलता था. <br />
<br />
चौबे जी अपने जमाने में बोडी बिल्डर हुआ करते थे, गाँव वालों को पीटना, फिर भाग के महानगर जा के वहां गुंडागर्दी करते हुए कभी साथियों को तो कभी ड्यूटी कर रहे पुलिस वालों को पीटना वगैरह उनके कर्म थे जिनको कई साल बाद मीडिया पानी से धो के फफूंद हटा के, चमकीली चद्दर में पैक कर के बेच रहा था. और मोटा मुनाफ़ा कमा रहा था. <br />
<br />
नहीं पल्ले पड रहा? अब भारत में सच बोलने पे कोई ना कोई आयोग पीछे पडने की संभावना रहती है कभी मानवधिक्कार आयोग, कभी मुस्लिम (अल्पसंख्यक) आयोग कभी चुनाव आयोग तो कभी सरकारी एजेंसियां मिल के ही सात साल पुरानी रसीद निकाल के कहती हैं कि ये तो चोर है !! खैर जान कीबोर्ड पे लेकर थोडा और समझाने की कोशिश करता हूं, क्या है कि भलाई का कीडा काटा है ना मुझे और वो भी बडे जोर से काटा है। <br />
<br />
हुआ यूं कि एक बहुत बडे वकील हुआ करते थे। बडे इन द सेंस कि मालदार थे और चोरों की लगभग सभी मंडलियों के सरदारों से राम रमी थी। एक बार वैराग्य जागने पे देव भूमि छोड के अमेरिका जा के वहीं की नागरिकता ले के बस गये थे पर कुछ सालों में ही वहां गुलाटियां मारने को ना मिलने के कारण मन मसोस के आदत के हाथों मजबूर हो के देव भूमि पे धीमे आते कलियुग को तीव्र गति से अवतराने पुन: लौट आये थे । <br />
<br />
वापस आने पर कैटल क्लास पे राज करते समूह में उनको उच्च पद प्राप्ति हुई, जरूर पिछले जन्मों के पुण्यों का फ़ल होगा ऐसा उनके जानकार बताते हैं। <br />
<br />
कैटल क्लास पे राज करता समूह वैसे तो निर्विघ्न राज कर रहा था, नये नये तरीके और मार्ग निकाले गये थे जिन पर क्षुद्र मानव नहीं वरन दुनिया के सभी देशों की मुद्रायें निर्बाध गति से इधर से उधर जा सके, पर ना जाने क्यों प्रगति करते कुछ लोग कैटल क्लास का भला सोचने वाले लोगों की आंखों की किरकिरी बन रहे थे । इन कैटल क्लास का भला सोचते लोगों को लग रहा था कि भारत की मुद्रा पे काली स्याही पोत के जो मुद्रा एक्सप्रेस वे पे धकेल दिया जाता है उसे अगर कैटल क्लास के भले पे काम लाया जाये तो शायद इस क्लास का कुछ भला हो !! कैसी कैसी तुच्छ सोच रखते हैं ये लोग भी, क्या करें इन जैसे लोगों ने कभी 'माइक' पकडे लेडी को तो सुना नहीं सो इनकी सोच ही छोटी है, छोटी सोच वालों की छोटी छोटी मांगें !! <br />
<br />
पर इन मांग करने वालों में से एक जने से राज करते लोग भयभीत हो गये, वो सीधा साधा सन्यासी था जिसे राजनीती का क ख ग भी नहीं आता था पर उसने इन राज करते , हां यार वही कैटल क्लास पे राज करते लोगों से मुद्रा पे काली स्याही पोतने का विरोध कर डाला और सबसे अजीब मांग तो ये कर डाली कि जो मुद्रा पहले स्याही पोत के एक्सप्रेस वे पे धकेल दी गयी है उसे वापस लाओ ... हा हा हा हा हा मेरी तो हंसी नहीं रुक रही, कैसी कैसी बेतुकी मांगें करते हैं ये कैटल क्लास के लोग ! <br />
<br />
खैर इस बेतुकी मांग को सुनकर दिल्ली में बैठे चमगादडों ने हाई फ़्रिक्वेंसी में चिल्ली मारी जो कि वो आवाज सुन सकने वाले सभी प्राणियों को पूरी एको साउंड के साथ दुनिया भर में सुनाई दी। <br />
<br />
इस चिल्ली को सुन के कई प्राणी सहायता करने आये, राज करते लोगों ने उनमें से जिन लोगों को चुना उनमें से एक गणित का ज्ञाता था जो कि गुणा भाग में माहिर था इतना माहिर कि उसे ये तक याद नहीं रहता था कि उसने किससे कितना रोकडा उधार लिया है और कब कब कहां कहां लिया है ! एक प्राणी ऐसा था जो कि जिंदगी भर ईमानदार छवि के साथ रहा पर अब ठेले पे आ के टैक्सी से आया हूं बोलता था । एक अन्य प्राणी को रंगा सियार कह सकते हैं, वो पवित्र माने जाने वाले भगवा रंग के कडाह में कूद गया था - हरियाणा प्रदेश में कैटल क्लास के राजाओं की खिदमत करते करते, जब बाहर निकला तो सबको सर झुकाये देख के बडा चकराया, आइना देख के उसे जब समझ आया तब से उसने अपने नाम के आगे स्वामी लगा लिया और पूरे जंगल में रंगे सियार की भांति हुक्म देता घूम रहा था कि उसे सीधा भगवान ने ही भेजा है। एक अन्य प्राणी जो चुना गया था वो बचपन में ठुक ठुका के इतना कुंठाग्रस्त हो गया था कि जब वो अपनी आप बीती बताता तो लोग व्यंग समझ के हंसने लगते और वो सबपे लानत भेज के खुश होता रहता। अब सवाल था कि इन सर्कस के प्राणियों का नेता किसे चुना जाये जिसे ये जैसा बोले वैसा करे और जिसका लोग भी भावनाओं में बह के यकीन कर सकें। <br />
<br />
इनके नेता के रूप में हमारे प्यारे चौबे जी को चुना गया उनकी ख्याति अनशनकारी के रूप में अपने प्रदेश की सीमायें फ़ाड फ़ाड के बाहर निकलने को बेताब हो रही थीं। <br />
<br />
गुणा भाग को भेजा गया चौबे जी को शीशे में उतारने, गुणा भाग ने ये काम बखूबी किया। <br />
<br />
चौबे और उनकी मंडली ने आ के "चुरघुस" नाम का मंत्र मीडिया के लाउडस्पीकर में फ़ूंका और वो सारे देश में गूंज गया । इस मंत्र की इतनी महिमा गायी गयी कि सबको यकीन हो चला कि पचास पैसे से ले कर हजार रूपये के नोट तक का भ्रष्टाचार बस अब एक टोपी लगा के 'मैं भी चौबे' बोलने और हमें चाहिये "चुरघुस" बोलने से खत्म हो जायेगा। जनता जो मोमबत्ती जला के ये सब फ़ोर्ड सर्कस कर रही थी को देख देख के यूरो, डोलर और स्विस फ़्रेंक तक सब हंस रहे थे । <br />
<br />
पर चौबे जी ने अपना अनशनकारी धर्म निभाया और <b>मीडिया के कांधे चढ कर देश के लिये उठी आवाजों को</b> '<b style="color: red;">चेक मेट</b>' <b>कर दिया</b> । और मजे की बात ये कि देश का नाम ले के देश को ही जो शह मात दी गई उसे महसूस तो सबने किया पर गलती किसने, कहां की ये काफ़ी समय तक किसी के समझ ही ना आया। चौबे जी फ़ूले ना समाये । <br />
<br />
हर पांच साल बाद आने वाली बरसात आने को थी । चंदा ठिकाने लग चुका था, फ़ंड में कमी आते देख चौबे जी ने कोढ कमिटी की मीटिंग बुलाई और इस बार सर्कस समुन्दर के किनारे लगाना तय हुआ । <br />
<br />
चौबे जी भूल गये कि जनता ने स्टील के गिलास के अंदर विटामिन मिला पानी और गुणा भाग की कमजोर गणित, ईमानदार का ठेला, रंगे सियार की हुंवा हूंवा, और एक कुंठित व्यक्तित्व को विश्वास के साथ पहचान लिया है ।<br />
<br />
समुन्दर के किनारे जो भंडारा लगा उसपे छुट्टी के दिन भी गिने चुने लोग देखे गये । यही वो समय था जब चौबे जी को लगा कि कुछ गलत किया मैंने और उन्होनें घबरा के 'गुणा भाग' की आवाज को पहली बार अनसुना करके जोर से उस सन्यासी को आवाज लगाई जिसके लिये वो कहा करते थे कि इसे तो अपने पांडाल में घुसने तक नहीं दूंगा । पर सन्यासी भी होशियार हो चुका था, उसने छाछ से ना जलने का निश्चय किया और दूर से ही वापस आवाज लगा दी की मेरा आपको पूरा समर्थन है। गोल भवन के कर्णधारों ने उस शाम दो मुर्गे ज्यादा खाये ।<br />
<br />
समय होत बलवान । चौबे जी जो मीडिया के कांधे चढ कर महापराक्रमी की पदवी प्राप्त कर चुके थे, समुन्दर किनारे सदमे में आ गये । वैसे ही तबीयत खराब थी थोडी सी, सदमे के कारण और खराब हो गई । जनता उनको अब चौबे जी की बजाय दुबे जी बोलने लग गयी। दु:ख और सदमें में उन्होनें अस्पताल की शरण ली, जहां फ़िर से राज करते लोगों ने उन्हें गिनीपिग बना डाला । और मनुष्यों पे सीधे ही दवाई टेस्ट करने वाले डाक्टर को इस उत्कॄष्ट कार्य के लिये एक सरकारी चाटुकारों को दिया जाने वाला पुरस्कार भी दिया गया । दुबे जी अभी भी स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं, आशा है वो स्वस्थ हो कर लौटेंगे और इस बार गुणा भाग, ईमानदारी का ठेला और कुंठित व्यक्तित्व को किनारे कर राष्ट्र के लिये सच में लडने वाले सन्यासी के साथ ईमानदारी से आ कर पुन: चौबे जी कहलायेंगे । अन्यथा जिंदगी भर चौबे जी रहने के बाद दुबे जी बनने का दर्द उन्हें हमेशा वैसे ही सालता रहेगा जैसे कि 'बहुत बडे वकील' और सरकारी राजपरिवार को नेटवर्किंग साइट्स पर फ़ैला सच सालता है।<br />
<br />
<hr />
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<br />
For a change, here are two simple steps to add facebook like, send and
comment box to your blogpost. Yup, you'll get separate one for each
post.<br />
<br />
Let's begin<br />
<br />
1. edit your template in HTML and<br />
<br />
above <span style="color: #45818e;"><head></span>, paste -<br />
---------------------<br />
<div id='fb-root'/><br />
<script>(function(d, s, id) {<br />
var js, fjs = d.getElementsByTagName(s)[0];<br />
if (d.getElementById(id)) return;<br />
js = d.createElement(s); js.id = id;<br />
js.src = &quot;//connect.facebook.net/en_US/all.js#xfbml=1&quot;;<br />
fjs.parentNode.insertBefore(js, fjs);<br />
}(document, &#39;script&#39;, &#39;facebook-jssdk&#39;));</script><br />
<script src='http://code.jquery.com/jquery-latest.js'/><br />
---------------------<br />
<br />
2. expand widget and search <span style="color: #45818e;"><data:post.body/></span>, just below that, paste these lines - <br />
----------------------<br />
<script src='http://connect.facebook.net/en_US/all.js#xfbml=1'/><br />
<fb:like expr:href='data:post.url' send='true' show_faces='true' width='450'/><br />
<fb:comments expr:href='data:post.url' num_posts='2' width='500'/><br />
----------------------<br />
<br />
It's done. Say thanks, view your blog and keep posting.<br />
<br />
<hr />
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वो काफी डरा डरा और सदमे में था.<br />
<br />
शकल ठीक ठीक वैसी ही बना रखी थी, जैसे भारत की तथाकथित आजादी के करीब 65 साल बाद भी दूर गाँव का आम शांतिप्रिय भारतीय, जो रोजी रोटी कमाने के लिए भागदौड करता रहता है और उसे अचानक पुलिस स्टेशन बुलाया गया हो. या वैसी जैसी संघ का नाम सुनते ही फर्जी देशभक्तों की हो जाती है.<br />
<br />
मैंने पूछा कि क्या बात है भाई, ये क्या हाल बना रखा है?<br />
<br />
कहने लगा परेशानी ही परेशानी है, क्या बताऊँ?<br />
<br />
मैंने फिर पूछा, वो तो हर किसी को है, अब बताएगा तो तुझे मुफ्त में मेरे जैसे महाज्ञानी की सलाह मिल जायेगी (और कोई माने या ना माने, मैं तो हमेशा से खुद को महाज्ञानी मानता आया हूँ), फिर भी नहीं बताना चाहता और नखरे दिखा रहा है तो दिखाता रह.<br />
<br />
मुफ्त का नाम सुनते ही उसकी आँखों में चमक आ गई, और चेहरे पे वातावरण में प्रदूषण की तरह छाया डर और सदमा कम हुआ, वो बोला - यार ये पहले से ही सरकार ने पुंगी बजा रखी है और अब ये नया साल फिर से आ गया और नए नए हमले रुकने का नाम ही नहीं ले रहे.<br />
<br />
मैं हल्का सा मुस्कुराने से खुद को नहीं रोक पाया, हाँ ये नया साल तो हर साल आ जाता है, कितनी परेशानी की बात है, और हमले? वो तो हमारे सरकारी कारिंदे बोलते हैं कि जनता की तो आदत हो गई है हमलों की और मरने की. सरकार मस्त, आतंकी मस्त तो तू क्यों जां सुखा रहा है बेमतलब के, हमला हो, मर जाए तो बोलना. तब तक चुप रह.<br />
<br />
वो बोला - हाँ, जैसे तैसे इस गुजरते साल के साथ एडजस्ट करके ठीक ठाक ज़िंदा रहना सीखा था, फिर से एक और नया साल आ गया, अब ये ना जाने कैसा रहेगा? और मैं आतंकी हमलों की बात नहीं कर रहा था. मैं तो मीडिया के द्वारा हो रहे हमलों की बात कर रहा था.<br />
<br />
मैं थोडा चकराया, और बोला, अरे इसमें क्या परेशानी है, ना जाने कितने मीडिया हाउस और उनके चैनल्स इस दुःख में दुबले हो रहे हैं की आपका नया साल कैसा रहेगा जानिये सिर्फ और सिर्फ हमारे ज्योतिषी की साथ, हमारे चैनल पर, और हमारे चैनल पे ना देखा तो वो दूसरा चैनल वाला तो बता ही देगा, वो नहीं तो तीसरा, नहीं तो चौथा, पांचवां ... और मीडिया के द्वारा कौनसे नए हमले होने लग गए वो तो काफी समय से हो रहे हैं, उनसे क्या घबराना, अब तो काफी लोग जानते हैं की ये नंगे हमें कपडे बेचने की कोशिश कर रहे हैं. फिर भी खुल के बता. ये खुल के का मैंने इसलिए बोला की जब भी, भारत के आम आदमी को अगर आप खुल के बोलने को राजी कर लेते हैं तो आपका मस्त टाइम पास हो जाता है, और वो तो था ही मानो सर्टिफाइड आम आदमी. वो जब भी बोलता था तो कुछ कुछ अपनापन जैसा तो महसूस होता था, पर थोड़ा डर भी लगा रहता था की जाने अब क्या दुखडा सुनाएगा, यु नो ना, पूअर कॉमन मैन ऑफ इंडिया, बेचारा.<br />
<br />
हाँ तो उसने कहा - न्यूज चैनल ना जाने क्यों हर कुछ देर में सरकार या उनके आकाओं का गुणगान करते रहते हैं, न्यूज कम दिखाते हैं, पेड न्यूज ज्यादा.<br />
<br />
मैं मन ही मन सत्ता पक्ष की तरह चौंका अरे इसे तो अब पेड न्यूज भी समझ में आने लगी है !!<br />
<br />
उसने बोलना जारी रखा - ये हमें बताते रहते हैं की कौनसा फलानेवुड का बन्दा या ढिकानेवुड की बंदी अब कहाँ क्या करने वाली है, कैसे करने वाली है, किसके साथ करने वाली है, अचानक उसे ध्यान आया कि उसने "क्या" को रहस्य के आवरण में छुपा रखा है, तो बोला कि इन चैनल वालों का बस चले तो इन फालतू लोगों को चौबीस घंटे लाइव दिखाएँ. कभी डर लगता है कि ना जाने कब डर्टी न्यूज देखने को मिल जाए या पहले जैसे रावण हर जगह आ आ के तंग करता था अब ये कौन टू ना करे. वरना हर जगह कौन टू कौन टू हो जाएगा. उफ़.<br />
<br />
बातें मजेदार कर रहा था इसलिए मैंने टोका नहीं. उसने आगे कहा अब बच्चों के चैनल पर विज्ञापन बच्चों के प्रोडक्ट्स के आयें तो समझ आता है पर वहाँ भी मार्केट साबुन बेचता है !! बच्चों को हथियार बना के? ना तो कोई चैनल ये कभी बताता है कि CWG से पहले उसके विरुद्ध न्यूज ना दिखाने के लिए उन्होंने जो विज्ञापन रूपी गाजरें डाली थी वो कितनी असरदार रहीं थी? ना कोई शीला शुंगलू कि बात करता है. ना कोई गोवा, कोयला कि कानाफूसी भी करता नजर आता है. ना कोई कभी सरकारी राजपरिवार के बारे में कभी बात भी करता है. क्या भारत निर्माण कि हड्डी ने सबका मुंह बंद कर दिया है?<br />
<br />
मैंने कहा अपने पैसों से इनको डाली गई हड्डी से दिल दुःख रहा है? बोला हाँ.<br />
<br />
मैंने काफी देर से किसी को भी कोई सलाह नहीं दी थी सो इससे पहले कि मेरे पेट में दर्द हो, मैंने मुफ्त में बहुमूल्य सलाह दे ही डाली, कोर्ट की शरण चला जा, अगर उनको लगता है कि गलत है तो रोक देंगे.<br />
<br />
उसने कहा देख भाई, तू सुनता है तो मैं सुनाता हूँ, ये कोर्ट वोर्ट तो मैं तब भी नहीं गया था जब सरकारी युवराज ने मुझे और मेरे जैसे लाखों मेहनतकश लोगों को भिखारी बोला था. और मैं जो बता रहा हूँ वो जब आम आदमी होते हुए मेरे को दिख रहा है तो क्या विपक्ष को और देश के प्रबुद्ध जनों को नहीं दिख रहा? मैं तो अपने बोस के खिलाफ भी जाने से पहले बीस बार सोचता हूँ और फिर कैंसल कर देता हूँ. ये मेरे से नहीं होगा. मैं सब देख लूंगा पर विरोध करने के नाम पे मैं कुछ नहीं करूँगा.<br />
<br />
इतनी बातें कर वो तो चला गया और मैं (हालांकि मुझे कोई सिक्योरिटी नहीं है, साइकिल चलाते डर लगता है कब कौन "लाइसेंसधारी" टक्कर मार दे, वेहिकल चलाते पेट्रोल के दामों से डर लगता है, सड़क पर टोल देना होता है, रेल में जाने के लिए धक्के खाने पड़ते हैं और एयरपोर्ट पर जम के जांच होती है, पर मैं -) फिर से खुद को खास समझते हुए अपने काम में मगन हो गया. सच बताऊँ तो मुझे थोडा कम ही पल्ले पड़ा कि वो किस किस चीज से सच में परेशान है और कितना, और क्या उसकी ये परेशानियां जुडी हुई है? और वो अगर इतना ही परेशान है तो कोई उपाय पे काम क्यों नहीं करता?<br />
<br />
<div style="color: black;">
वैसे आप क्या कर रहे हैं?</div>
<br />
<hr />
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<hr />
</div>
<hr>
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व्यंग्य पढ़ पढ़ के आप मेरे ब्लोग्स से परेशान हो चुके हैं तो लीजिए कुछ सीरियस मैटर -<br />
<br />
<br />
अगर हम आज विजय दिवस मनाते हैं तो हम 20 नवंबर को पराजय दिवस क्यों नहीं मनाते?<br />
<br />
हम ये याद क्यों नहीं करते की भारत ने युद्ध और अपनी जमीन दोनों खोई थी|<br />
भारत की खिलाफ युद्ध और भारतीय जमीन पर कब्जा तब रुका जब चाइना ने एकतरफा सीजफायर किया - 20 नवंबर 1962 को|<br />
<br />
क्या हम पराजय दिवस इसलिए नहीं मनाते कि हमारे में खुद को आईने में देखने का साहस नहीं है या फिर इसलिए कि जिन लोगों का शासन रहा उन्होंने ऐसा उचित नहीं समझा कि "महान", "सेकुलर" और "बच्चों के सरकारी चाचा" ने नेवी और एयर फोर्स का प्रयोग नहीं किया ये बात हर साल हार के साथ क्यों याद करें?<br />
<br />
भारत में सिर्फ नेहरू, गांधी और उनके वंशजों के गुणगान का रिवाज है, उन पर उठने वाले प्रश्न निरुत्तर रह जाते हैं, पूछने वाले के पीछे एक तंत्र पड़ जाता है या फिर अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता यहाँ तक आ के दम तोड़ देती है |<br />
<br />
भारत ने गांधी और गांधी के द्वारा उनके चुने गए सत्ता के भोगी जवाहर लाल नेहरू पे पूरा भरोसा कर के क्या पाया? विभाजन और विषम आर्थिक सामाजिक समस्याएँ, जिनके साथ मुस्लिम तुष्टिकरण मुफ्त मिला|<br />
<br />
आज हमारा देश जिन समस्याओं से जूझ रहा है वो इन महापुरुषों की ही खड़ी की हुई है, और इनकी राजनीतिक वंशज एक राजनैतिक पार्टी ही इन समस्याओं को आगे बढाने, और खत्म ना होने देने के लिए जिम्मेदार है|<br />
<br />
मीडिया वही दिखाता है जो मीडिया हाउस के फेवर में हो या इनके वंशजों के| सच की तलाश और जनजागरण इसीलिए भारत में एक अत्यंत ही दुष्कर कार्य है| खुद से पूछें की आप अपना क्या योगदान दे रहे हैं इसमें?<br />
<br />
याद रखें हमें हमारी कमियां देखना और उन्हें दूर करना इसलिए भी जरुरी है की जो देश और समाज अपनी कमियां ना देख कर सिर्फ अपनी उपलब्धियों के ही गुणगान में मग्न रहता है वो समय के साथ नष्ट हो जाता है|<br />
<br />
इसलिए हम आज विजय दिवस तभी मनाने का हक रखते हैं अगर हमने 20 नवंबर को पराजय दिवस के रूप में मनाया हो, खुद की कमजोरियों का विश्लेषण किया हो और कुछ सीखा हो अपनी पराजय से|<br />
<br />
<hr />
<div style="color: purple; font-family: Verdana,sans-serif;">
<span style="font-size: small;">(c) Naresh Panwar. All rights reserved. Only this post "<a href="http://baaharkibaat.blogspot.com/2011/12/blog-post_16.html" target="_blank">विजय और पराजय, क्या सीखा हमने?</a>" can be distributed with no-commercial no-derivatives creative commons license. It means you can share the post with providing a link which states the origin of the post / matter. Any commercial distribution / broadcast of this post without prior written permission of the Author may lead you to face legal actions and penalties.</span> </div>
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<span style="font-size: small;">ब्लोगाराचार्य श्रीʰ नरेश के अनुसार ग्रहण के प्रभाव -<br /><br />अगर अब तक आप मूल्यवृद्धि, रुपये की कीमत में गिरावट, जीवन मूल्यों में गिरावट, ब्लोग्स और सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर केन्द्र सरकार की नजरों से बच गए हैं तो आप निश्चिन्त रहें ग्रहण आपका कुछ नहीं बिगाड़ सकता| पर अगर आप इनमें से किसी की भी चपेट में आ चुके हैं तो ग्रहण के कौनसे शुभ अशुभ फलों की चपेट में आने वाले हैं आप स्वयं देखें - <br /><br />महिलायें आज सवेरे के काम निपटा कर जहाँ तक संभव हो नित्य की भाँति जितने और जितनी देर तक भाँति भाँति के सीरियल देख सकती हैं देखें, रोज की तरह आपका भेजा खाली हो जाएगा और उसमें ना सुबुद्धि रहेगी और ना दुर्बुद्धि और खाली दिमाग व्यक्ति सदैव खुश और सुखी रहता है. <br /><br />जो महिलायें कामकाजी हैं वो कम से कम आज तो काम करें और ऑफिस में रोजाना की तरह सात घंटों की बातचीत को कल के लिए टाल दें. सहकर्मियों की चुगली करने पर आज ग्रहण के कारण आपकी चुगली पकड़ी जा सकती है. बोस के सामने रोज की तरह बिना मतलब के दांत निकालना आज विपरीत प्रभाव दे सकता है. आज अपने सास ससुर को रोज की तरह मन ही मन या पीठ पीछे गाली ना निकालें, मजा नहीं आएगा और ऐसा करने से काम वाली बाई एक सप्ताह की छुट्टी ले सकती है. ग्रहण के इन अशुभ प्रभावों से बचने के लिए अपने पसंद की एक दर्जन लिपस्टिक काम वाली बाई को दान करें. <br /><br />सभी प्रकार के पुरुषों के लिए ग्रहण का प्रभाव शुभफलदायी रहेगा, आज आप छुट्टी ले सकते हैं, जाम से बच सकते हैं, आपको ऑफिस के या घरेलु काम के लिए तले जाने की संभावनाएं ना के बराबर हैं. ग्रहण से पूर्व विशेष 'ठोक योग' बन रहा है, दोपहर दो बजे से दो बजकर तीन मिनट तक आप अपने सहकर्मी या बोस को ठोक सकते हैं, आपका कोई कुछ नहीं बिगाड़ पायेगा. समयपालन का विशेष ध्यान रखें.<br /><br />आज दिन में यथासंभव सुरापान टालें वरना पिछले सप्ताह की तरह फिर से आपकी ठुकाई हो सकती है.<br /><br />शाम को दारू क्रिया शुरू करने से पहले अपने पसंद के नेता को गाली दें और खत्म करने के बाद चिलम संडे या कन्नी लेऑफ का मन ही मन ध्यान करें, और कोशिश करें की पहले पैग और आखिरी पैग लेने के बीच अंतर मात्र दस मिनट का हो, अन्यथा बहुत अशुभ फल मिल सकते हैं.<br /><br />अब राशियों को देखा जाए -<br /><br />मेष - राशि तो ठीक है, फल अपने मेंढे जैसे दिमाग को कैसे प्रयोग में लाते हैं इस पर निर्भर करता है. आज नहाते समय सिर्फ नहाएं.<br /><br />वृष - ही ही ही, क्या राशि है. खैर, आज ग्रहण का पूरा फायदा आप उठा सकते हैं, मॉल से सामान उठाते हुए आपको कोई कैमरा नहीं देखेगा, बस कोशिश करें की माल पार करते समय उत्तर पूर्व दिशा में मुंह रखें.<br /><br />मिथुन - आज अपने दिमाग को आराम दें और राशिभ्रंश को अपने दिमाग से निकाल दें. आज आपके द्वारा की गई ट्वीट आपको परेशानी में डालेगी.<br /><br />कर्क - राशिगत आदत छोड़ें आज के लिए और दिन भर चैन से रहें और सबको रहें दें. शाम को ससुराल पक्ष के लोग आ सकते हैं सप्ताह भर घर रहने के लिए. बधाई हो.<br /><br />सिंह - इस जन्म में मानव हैं इसलिए मानव स्वभाव अपनाएं. आज आपके प्राइवेट फोल्डर आपकी गलती से पब्लिक हो सकते हैं और सप्ताह बीतते बीतते आपको उनकी सीडी मार्केट में मिल जायेगी. बचने के लिए अपनी कम्प्यूटिंग डिवाइस पानी में डाल दें.<br /><br />कन्या - अगर आपको समझ नहीं आ रहा की क्यों लोग आपके आस पास चिपके रहते हैं तो जान लें की ये राशि का ही चमत्कार है. आज स्वयं किसी भी अकाउंट में लोगिन ना करें, पास में जो भी दिखे उसे यूजरनेम और पासवर्ड बता कर उससे लोगिन करवाएं.<br /><br />तुला - कीतना कम तोला रे कालिया? आज ऑफिस या घर में कोलावेरी गाना जोर जोर से बजाएं और हो सके तो साथ में डांस भी करें. गुप्त चिंताओं को गुप्त ही रहने दें. लिफ्ट से नीचे जाते समय तीसरे फ्लोर पर रुक कर तीन मिनट वहां बैठ कर ही ग्राउंड फ्लोर पर जाएँ.<br /><br />वृश्चिक - आठवीं और सबसे खतरनाक राशि. आज डंक मारने पर काबू रखें, वरना पार्किंग में जगह नहीं मिलेगी और डिक्की भी भूल से खुली रह जायेगी. बचने के लिए मोबाइल को फुल चार्ज रखें, और केन्द्र सरकार की आलोचना ना करें, भले ही आपको लग रहा हो की धुलाई के बाद आपकी चड्डी नहीं सूखी उसमें केन्द्र सरकार के बिगडैल मंत्रियों का हाथ है.<br /><br />धनु - अब तेरा क्या होगा रे धनु ? आज आपको आपके छोटे छोटे बच्चे (अगर हैं तो) सवेरे सवेरे पीटेंगे, फिर बीबी का नं. आएगा, बाहर निकलते ही पक्षी आप पर ... और फिर शाम तक हर जगह आपकी ... होगी, पर अच्छी बात ये है की आप इन सबका बुरा नहीं मानेंगे.<br /><br />मकर - आज आपकी भारत सरकार जैसी मोटी खाल की प्रशंसा होगी, कि किस तरह आप हर वो चीज हंसते हंसते झेल जाते हैं जिसमें बाकी लोगों को बाकी लोगों की वो याद आ जाती है. अरे वो मतलब नानी. पूरा दिन शुभ बनाने के लिए सवेरे घर से बाहर निकलते ही जो दिखे उसे जोर जोर से जम के गालियाँ निकालें.<br /><br />कुम्भ - आज अगर फ्रेंड को या घरवाली को मूवी नहीं दिखाई तो हाथ धो बैठोगे, पहले केस में उससे ही और दूसरे केस में बर्तन धोने के बाद. उपाय के लिए सफ़ेद टोपी लगा के गन्ना चूसें.<br /><br />मीन - आपके भौतिक शरीर में सुरा और पानी का बैलेंस बिगड़ चुका है, आज नीट लें और शुभफल प्राप्ति हेतु बारटेंडर या वेटर को 12345.50 रूपए की टिप दें. शाम को घर लौटते समय एक मिनट तक बिल्डिंग के गेट पर रुक कर निरंतर होर्न बजाकर या चिल्लाकर ही प्रवेश करें.<br /><br />अंतत: सभी से मेरा कहना है की आज और आज के बाद भी शुभफल प्राप्त्यार्थं मेरे ब्लॉग पढते और पढाते रहें इससे अशुभ हटेगा और सायबर और असायबर शक्तियों की कृपा मिलाती रहेगी. श्रद्धानुसार लाइक पर क्लिक करें और कमेन्ट दें.<br /><br /><br />( ʰ - गिनती की कोई जबरदस्ती नहीं है, श्री आप जितने लगाने चाहें अपनी श्रद्धानुसार स्वयं लगा लें )</span><br />
<span style="font-size: small;"><br /></span><br />
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<div style="color: purple; font-family: Verdana,sans-serif;">
<span style="font-size: small;">(c) Naresh Panwar. All rights reserved. Distribution in any media format, reproduction,
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<div class="separator" style="clear: both; text-align: center;">
</div>
<br />
<br />
सब गुत्थम गुत्था हो रखे थे ।<br />
<br />
इसे हमारे दायरे में लाओ, हमें इसके दायरे से निकालो, अरे इसमें दलित तो है ही नहीं, अरे मुस्लिम वर्ग के प्रतिनिधी कम हैं, हद है ठाकुर इतने कम? अरे पिछडा वर्ग छूट गया, ये क्या है? अगडी जाति वालों ने किसका बटेर चुराया है हम 50% से कम पर नहीं मानेंगे ...<br />
<br />
कुल मिला कर सब चिल्ला चिल्ला कर बता रहे थे कि वो किस तरीके की राजनीती के कांधे चढकर ऊपर उठे हैं। ये बात अलग थी कि ये अब इतने ऊपर उठ गये थे कि इनको ऊपर उठाने वाले कांधे ही चार कांधों के मोहताज होने वाले थे।<br />
<br />
कन्फ़्यूजियाइये मत, बात लोकपाल की हो रही थी और नक्कारखाने को मूर्त रूप देने वाले लोग और कोई नहीं आदरणीय (ये मैं सिर्फ़ विशेषाधिकार हनन का नोटिस ना मिले इसलिये लगा रहा हूं) सांसद थे ।<br />
<br />
सालों (मन तो कर रहा है गाली देने का पर यहां सालों = years है) साल तडपा तडपा कर आखिर लोकपाल आखिर आ ही गया। पर इस दायरे दायरे के खेल में हुआ ये कि भ्रष्टाचार लोकपाल के दायरे से बाहर था और लोकपाल लोक के।<br />
<br />
भले ही खुद के दांत नकली हों और नख कागज से रगड खा के टूट जाते हों पर लोकपाल नखदंत विहीन है या नहीं इसे सिद्ध करने में लोग महंगाई भूल कर जुटे थे, मानों उनके, जो वो सिद्ध करना चाहते हैं वो सिद्ध करते ही, सरकार अगले पद्म सम्मान के लिये अपने चाटुकारों या खबरियों और उंगलीबाजों की जगह उनको ही चुन लेगी।<br />
<br />
अब परेशानी लोकपाल चुनने की थी। सर्वदलीय बैठकों में (वो जो दिन में होती हैं वो नहीं, वो जो छिप कर होती हैं वो) तय किया गया कि तुम्हारे राज्यों में हमारे लोकपाल और हमारे राज्यों में तुम्हारे लोकपाल।<br />
<br />
जनता खुश, जनता खुश होने का कोई मौका छोडती है क्या? लोकपाल ने काम करना शुरू किया और पता लगा कि पहले एंटी करप्शन वाले भी इससे अच्छा काम करते थे।<br />
<br />
कुछ लोग अभी भी आस लगाये बैठे हैं कि भारत से एक दिन भ्रष्टाचार खत्म होगा।<br />
<br />
<hr />
<span style="font-size: small;">(c) Naresh Panwar. All rights reserved. Distribution in any media format, reproduction,
publication or broadcast without the prior written permission of the Author may lead you to face legal actions and penalties.</span> <br />
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<a href="http://baaharkibaat.blogspot.com/2011/11/blog-post.html" target="_blank">भाग एक</a> और <a href="http://baaharkibaat.blogspot.com/2011/11/blog-post_26.html" target="_blank">भाग दो</a> से आगे . . .<br />
<br />
इतिहास अपने आप को दोहराता है।<br />
<br />
वहीं से शुरु करते हैं जहां कहानी को छोडा था।<br />
<br />
प्रधान और ठकुराईन ने इस बीच ये मानते हुए कि गांव में जो तोलता है कम तोलता है और हमेशा ही महंगे भाव बेचता है, दूसरे गांवों से बडे बडे दुकानदारों को गांव में दुकानें खोलने के लिये बुला लिया। जबकि वास्तव में वो अपना लालच और हिस्सा छोड देते तो महंगाई तुरंत कम हो जाती।<br />
<br />
लोग पहले से ही परेशान थे, काफ़ी लोगों ने, जिनमें बडी संख्या दुकानदारों की और दुकानदारों द्वारा प्रायोजित भीड की थी, गलियों में खूब चिल्ल पों मचाई। पर प्रधान और मंडली ने रात्रिदमन कांड के समय देख लिया था कि इन चनों में भाड फोडने का दम नहीं है इसलिये वो इन सब घटनाओं के मजे लेते रहे।<br />
<br />
कुछ पंचों ने जब विरोध किया तो पहले तो उनको भाव नहीं दिया, फिर उन पर पंचायत में चल रहे मुकदमों का डर और कुछ थैलियां दिखाई जिनके हिलने पर खन खन की आवाज आती थी।<br />
<br />
इसके बाद विरोध करने वाले पंचों ने विरोध ठीक उसी तरह किया जैसे नई नवेली दुल्हन सुहागरात को करती है। गांव की गलियों मे हल्ला गुल्ला करने वालों को धर्म और जाति के नाम पर बांट दिया गया और वो क्या करना था ये भूल कर एक दूसरे को खुशी खुशी मारने काटने में जुट गये।<br />
<br />
इस बीच पडोस के गावों में कुछ घटनायें घटीं जिनका आसानी से अनुमान लगाया जा सकता था और जिन्होनें दूरगामी परिणाम दिखाये।<br />
<br />
पास में एक गांव था जहां ना जाने कैसे पौधे उगाये गये थे कि वहां के लोग मानवभक्षी हो गये थे। उन पर नकेल कसने को और बाडाबंदी करने को जब दूसरे गांवों के लोगों ने कोशिश की तो बढते खर्चों ने उनका रास्ता रोक दिया। हालांकि वहां के प्राकॄतिक साधन ललचाते थे फिर भी ये घाटे का सौदा लगने लगा। इस बीच प्रधान के गांव और पास के गांव के बीच तालाब में खुदाई करने को लेकर हल्की गर्मागर्मी हुई जिसे मानवभक्षी गांव के लोगों ने बीच में कूद कर युद्ध का रूप दे दिया। दूसरे गांवों के लोगों ने सब पक्षों को खूब हथियार बेच कर मोटा मुनाफ़ा कमाया और अपनी अपनी बर्बाद हुई अर्थव्यवस्था में नई जान डाल ली।<br />
<br />
युद्ध का परिणाम क्या रहा?<br />
<br />
चूंकि प्रधान के गांव के लोगों ने अपना सारा चिंतन मुद्रा और मुद्रा की दुनिया तक सीमित कर रखा था इसलिये उनके कभी दिमाग में ही नहीं आया कि मानवभक्षी गांव का और तालाब के समीप गांव का गठजोड उनके कितना खिलाफ़ जा रहा है। युद्ध कब उत्कर्ष लाते हैं, ये युद्ध भी अपवाद नहीं था। इसका परिणाम ये निकला कि ये बहुत लंबा चला, धीरे धीरे ये सब गांवों में फ़ैल गया, गुट बन गये और एक दूसरे पर जम कर हमले किये गये। सबसे ज्यादा नुकसान प्रधान के गांव को झेलना पडा। युद्ध में उपयोग में लाये गये हथियारों ने गांव की आधी आबादी को और आधी से ज्याद जमीन का उपजाऊ होना खत्म कर दिया। पचास साल बाद आज टुकडों में बंटा प्रधान का और मानवभक्षी लोगों का गांव दूसरे पडोस के गांवों द्वारा शासित होता है।<br />
<br />
बहुत कहानी हो गई, इस कहानी के हिसाब से अभी जो समय गुजर रहा है उसमें मुख्य चुनावों से ठीक पहले हमारे प्यारे प्रधान गुट द्वारा अल्लाह हो अकबर और हर हर महादेव के नारे लगवाये जायेंगे। क्या आप तैयार हैं? ना ना उसके लिये 14 का इंतजार नहीं करना पडेगा आपको, जब हमारे प्यारे रात्रिशक्तिदिखाऊ निरपराधपीटक बेगुनाहहड्डीतोडक लुंगीधारी केंद्रीय मंत्री और परम आदरणीय विमानयात्राजांचमुक्त अद्भुतसंपत्तिउत्पाद्क गांव के सब चरणलोटन मानवों के प्यारे दामाद जी तिहाडधाम प्रस्थान करने वाले होंगे तब, अब आगे आप सोचिये कब.<br />
<br />
कथा समाप्तं।<br />
<br />
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</div>Nareshhttp://www.blogger.com/profile/15461285128594088471noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8680343949748852832.post-73073226859061027882011-11-26T17:40:00.000+05:302012-02-11T09:23:47.021+05:30एक गांव की कहानी - भाग दो<br />
<div style="line-height: 100%; margin-bottom: 0in;">
<span style="font-family: gargi; font-size: large;"><a href="http://baaharkibaat.blogspot.com/2011/11/blog-post.html" target="_blank">भाग एक</a> </span><span style="font-family: gargi; font-size: large;">से आगे </span><span style="font-family: gargi; font-size: large;">-</span><br />
<br />
</div>
<span style="font-size: small;">
</span>
<br />
<span style="font-size: small;">गांव वाले अपना सा मुंह ले कर लौट आये | सब समझ रहे थे कि बहुत गलत हुआ है पर कोई भी खुल कर विरोध नहीं कर रहा था | बुजुर्ग बताते हैं कि गांव वाले अक्सर सर झुकाये ही रहते थे | कुछ अपने सर झुकाने का ठीकरा भाग्य पर फोड कर खुद को ग्लानि से मुक्त कर लेते थे, तो कुछ जो हो रहा है उस पर बेबसी जताकर, कि हम क्या कर सकते हैं |<br /><br /><br />वहीं कुछ इतने समझदार थे कि जब से उन्होंने खुद के लिये पाया कि वो सर झुका के चल रहे हैं, तो उन्होंने कमर भी झुका के चलना शुरू कर दिया और सर झुका के चलने वालों को लानत भेजने लगे | और इस तरह से ना केवल खुद को धोखा दिया वरन प्रधान और ठकुराइन के खास लोगों की कॄपा भी प्राप्त कर ली | बताते हैं कि इनमें ज्यादातर लोग डुगडुगी वाले थे, जो गांव वालों को इतना भरमाते थे कि कभी कभी खुद ही भूल जाते थे कि उन्होंने इसी गांव में जन्म लिया है, और इसी के विनाश के बीज बो रहे हैं<br /><br /><br />खैर बारिश हुई और जैसा हमेशा होता आया था अच्छी फ़सल होते ही खरीद भाव जमीन पर आ गये |<br /><br /><br />एक युवा किसान जिसे ये गोरखधंधा कुछ कुछ समझ में आने लगा था, ने जाकर प्रधान के खास और खेती बाडी में टांग अडाने वाले बंदे को रूई की तरह धुनने की असफ़ल कोशिश की | कोई ना कोई युवा ऐसी असफ़ल कोशिश कुछेक सालों में अवश्य ही करता था और तब गांव वाले कुछ देर के लिये अपना झुका हुआ सर सीधा कर लेते थे, भले ही कुछ क्षणों के लिये ही |<br /><br /><br />भूतकाल में कुछ महाप्रतिभाशाली प्रधानों के समय ही भांप लिया गया था कि आने वाले समय में हमारे चेले चपाटियों में लालच और चोरी करके खाने पर नियंत्रण नहीं रहेगा इसलिये गांव के पहरेदारों की एक अलग टोली बनाई गई थी, जो प्रधान और उनके बंदों और ठकुराइन के कुनबे की चौबीस घंटे रखवाली या सुरक्षा करते थे |<br /><br /><br />किनसे? अरे गांव वालों से और किनसे? बाहर के गांव वाले इधर आकर इनको कुछ नुकसान पहुंचायें इसके अवसर नगण्य थे, हां पर अपनी रात दिन की कुनबे समेत मेहनत से इन लोगों ने चोरी कर कर के ऐसा माहौल बना लिया था कि बिना पहरेदारों के मिलने पर गांव वाले तुरंत इनका क्रिया कर्म कर डालें |<br /><br />पर सर झुका के चलने वाले लोग भला इस बात पर क्यों गौर करते कि, इनको सुरक्षा चाहिये का ख्याली पुलाव उनके खून पसीने की मेहनत से पकाये जाते थे<br /><br />उधर कुछ दिन बाद श्वेतवस्त्रधारी माणूस ने एक बार फिर चौपाल का चक्कर लगाया, गांव वाले बेचारे फिर डुगडुगी वालों और जो माणूस को लेकर आये थे, के झांसे में आ गये और मानने लगे कि अब बस हमारे दु:ख दर्द मानों खत्म होने ही वाले हैं |<br /><br />लोग चौपाल पर इकट्ठे हो गये अपने अपने जरूरी काम छोडकर | जिनसे जरूरी काम छोडे नहीं गये वो उन कामों को शाम ढले चौपाल के आस पास ही निपटाने लगे | इन सब अंधभक्तों का जयजयकार दूसरे गांवों तक भी सुनाई देता था, पर दूसरे गांव के लोगों के चेहरे पर ना जाने क्यों इस ध्वनि को सुन एक व्यंगात्मक मुस्कान आ जाती थी<br /><br />एक बार फिर माणूस चौपाल पर गाने गा कर अपने घर लौट गये पर ना जाने किसने किसको कैसी पट्टी पढाई कि गांव वाले खुश हो कर नाचने लगे कि अब हमारे सब दु:ख दर्द दूर हो गये | हालांकि कुछ लोग ऐसे भी थे जो इस बात से सहमत नहीं थे, पर एक तो गांव का सर झुका के रहने का रिवाज और दूसरे नक्कारखाने में तूती कौन बने सोच कर चुप ही रहे |<br /><br />कमर झुका के चलने वालों ने जश्न मनाने की अगुआई की और जश्न मनाते मनाते भी सर झुका के चलने वालों और सर सीधा रख के चलने वालों को लानत भेजने से नहीं चूके |<br /><br />ठकुराईन दूर गांव में बैठे बैठे ये सब सुन कर मुस्कुराती रहती थी | वो कहां आती थीं कहां जाती थीं या तो वो खुद जानती थीं या ऊपरवाला | प्रधान ने एक दो बार जानने की हालांकि कोशिश की, पर उसकी ये कोशिश ठकुराइन के खास चमचों द्वारा पकड ली गई और प्रधान को झिडकी सुनने को मिली |<br /><br />सूरज बाबा डूबे, उगे, डूबे, उगे, कुछ दिन बीतते बीतते गांव वालों में ठगे जाने का अहसास घर करने लगा |<br /><br />उधर गेरुये वस्त्र पहने फ़कीर से हमदर्दी रखने वालों से जब उस रात का रहस्य पूछा गया तो वो इधर उधर देख कर कि कोई सुन तो नहीं रहा है, धीरे से बोले कि प्रधान के नींद लेने के बाद, फ़कीर को उस रात बाकी लोगों के साथ खूबा मारा गया, फ़कीर के पास जो लोग हरदम दिखाई देते थे उनमें से कई के हाथ पैर तोड दिये गये और कोशिश की गई कि ये जिंदा बचे तो एक सबक हमेशा याद रख के जियें और अगर मर जाये तो सबसे अच्छा, बाकी लोग इन लोगों का अनुसरण करने और अपना सर सीधा कर के चलने से पहले सौ बार सोचेंगे |<br /><br /><br />पर आखिर फ़कीर को मारा क्यों? पैदायशी बुद्धू है क्या? जिसने पूछा उसे सुनने को मिला | कोई चोर कभी मानेगा कि मैं चोर हूं ? वो कभी अपने आप अपना चोरी किया माल लौटायेगा ?<br /><br /><br />फ़कीर की सोच ही गलत थी, ना जाने कैसी संगत में रहता है फ़कीर, एक क्षुब्ध युवा बडबडाया |<br /><br /><br />खैर फ़कीर की और जो लोग बेरहमी से मारे पीटे गये थे, उनकी चोटें समय के साथ ठीक हो गईं सिवाय उनके जो इस अमानवीय राक्षसी हमले में मारे गये | हरदम नीती सिद्धांतों की दुहाई देने वाले प्रधान और उनके लोगों ने इस पर ऐसी चुप्पी साधी कि मानों मातॄ-पितॄ शोक के कारण जबान नहीं खुल रही हो | और अगर वो बोलते भी तो क्या? अपने ही आकाओं के खिलाफ़ बोलने वाली आत्मा तो ना जाने वो कब बेच चुके थे |<br /><br /><br />पर फ़कीर ने नये जोश के साथ सोते हुए और सर झुकाये गांव वालों को जगाने के लिये गांव भर में जा जाकर लोगों को समझाना फिर से शुरू कर दिया, जाने ये फ़कीर क्यों नहीं समझा कि बिना खुद की डुगडुगी बजाये या बिना इन प्राणियों को बोटी खिलाये सब गांव वालों तक बात पहुंचाना लगभग असंभव सा था |<br /><br /><br />इस बीच गांव में ना जाने कितनी चोरियां हुई, कभी खेल करवाने के नाम पर, कभी खुदाई करने के नाम पर, कभी चुपचाप, कभी रात में और कभी दिन दहाडे, और कुछेक गांव वालों को छोडकर शायद ही किसी के कान पर जूं रेंगी | अगर रेंगी भी होगी तो शायद गौर नहीं किया होगा क्योंकि ठीक इसी समय सब लोग या तो किसी को बदनाम होते देख रहे थे या किसी बदनाम को नाम कमाते |<br /></span><br /><div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="font-family: inherit; line-height: 100%; margin-bottom: 0in; text-align: justify;">
<span style="font-size: small;"></span><br />
( <a href="http://baaharkibaat.blogspot.com/2011/12/blog-post.html" target="_blank">भाग तीन ...</a>)<br />
<br />
<hr />
</div>
<div style="font-family: inherit; line-height: 100%; margin-bottom: 0in; text-align: justify;">
<span style="font-size: small;">कहानी
काफ़ी सीरियस है</span><span style="font-size: small;">,
</span><span style="font-size: small;">हालांकि
इसे व्यंग में पिरोने की मैं जितनी
कोशिश कर सकता था मैंने की है</span><span style="font-size: small;">,
</span><span style="font-size: small;">सुझाव</span><span style="font-size: small;">,
</span><span style="font-size: small;">आलोचना या
कोई सी भी लोचना हो </span><span style="font-size: small;">(</span><span style="font-size: small;">केशलोचना
को छोडकर</span><span style="font-size: small;">)
</span><span style="font-size: small;">सबका तहे
दिल से स्वागत है </span>|</div>
<div style="color: blue; font-family: inherit; line-height: 100%; margin-bottom: 0in; text-align: justify;">
<span style="font-size: small;">-
</span><span style="font-size: small;">नरे</span><span style="font-size: small;">श
</span>
</div>
<div style="font-family: inherit; text-align: justify;">
<span style="font-size: small;">
</span></div>
<div style="line-height: 100%; margin-bottom: 0in;">
<div style="font-family: inherit; text-align: justify;">
</div>
<hr />
<div style="font-family: inherit; text-align: justify;">
</div>
<div style="color: #990000; font-family: Verdana,sans-serif; line-height: 100%; margin-bottom: 0in;">
<span style="font-size: small;">(c) Naresh Panwar. All rights reserved. Distribution in any media format, reproduction,
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<span style="font-size: small;"><span style="font-family: Arial,Helvetica,sans-serif;">
</span></span><br />
<div style="font-family: Arial,Helvetica,sans-serif; line-height: 100%; margin-bottom: 0in;">
</div>
<span style="font-size: small;"><span style="font-family: Arial,Helvetica,sans-serif;">
</span></span>
</div>
<span style="font-size: small;">
</span><br />
<hr />
</div>
<div class="fb-like" data-href="http://baaharkibaat.blogspot.com/2011/11/blog-post_26.html" data-send="false" data-show-faces="true" data-width="450">
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</div>Nareshhttp://www.blogger.com/profile/15461285128594088471noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8680343949748852832.post-61719478738612991302011-11-23T19:57:00.001+05:302012-02-11T09:21:50.965+05:30एक गांव की कहानी - भाग एक<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
एक गांव की कहानी<br />
<br />
<br />
एक बार एक गांव था जिसमें सब लोग हिल कर और कभी कभी मिल कर रहा करते थे |<br />
<br />
<br />
हिल कर ऐसे कि वहां जीना आसान काम ना था, हुआ ये कि वहां के जो प्रधान थे वो दुबारा प्रधान बन गये | कहने को तो लोकतंत्र था पर मर्जी सब पुरानी ठकुराइन की ही चलती थी | प्रधान को सुबह दोपहर और शाम को ठकुराइन के यहां हाजरी देने जाते देखा जा सकता था | गाहे बगाहे नहीं अक्सर उनको फोन पर भी जी मैडम जी मैडम कहते सुना गया था ऐसा उनके कुछ मुंहलगे बताते थे | तो जब ये प्रधान दुबारा सत्तासीन हुए तो ना जाने किसने इनको या इनकी मम्मी (ठकुराइन) को बोल दिया कि ये आपका आखिरी राजपाट है इसके बाद आप दुबारा नहीं आने वाले | हो सकता है कि उसने मजाक किया हो पर प्रधान और उनकी ठकुराइन मम्मी ने इसे सच मान लिया | <br />
<br />
<br />
<br />
फिर क्या था, चीनी बेचने वाले मोटे दुकानदार ने अगले ही दिन चीनी के भाव हर सप्ताह बढाने शुरू कर दिये |<br />
<br />
चूल्हा जलाने के लिये जंगल से लकडी काटने पर टैक्स धीरे धीरे बढा कर तिगुना कर दिया गया |<br />
<br />
चिट्ठी पत्री लाने ले जाने के काम में तो इतना घपला किया गया कि पंचायत में आज भी सुनवाई हो रही है और पंच खुद चकराये हुए हैं कि इनका करें तो क्या करें |<br />
<br />
<br />
ना तो गांव की जनता से निगलते बन रहा था और ना उगलते, इसी बीच गांव के बीच में एक गेरुये वस्त्र पहने फ़कीर ने बोला कि मैं अगले महीने चौपाल पर आकर तब तक बैठूंगा और तब तक बैठ रहूंगा जब तक गांव के चोर परेशान होकर खुद को चोर ना बोलें और अपनी अपनी चोरी मान कर चुपचाप चुराया हुआ माल ना लौटा दें | गांव वाले खुश हुए, तालियां बजाइ | गांव वाले अक्सर साल दो साल में बढिया बातें सुनकर खुश हो जाते थे | पर ये बात डुगडुगी वालों ने गांव में किसी को भी नहीं बतायी, बोलते हैं कि उनको ना जाने किसने बहुत मोटी रकम दी थी |<br />
<br />
<br />
खैर फ़कीर की घोषणा के अगले ही दिन जब उजाला हुआ तो सबने देखा कि चौपाल पर एक श्वेतवस्त्रधारी माणूस बैठा है जो दूर से देखने पर बिलकुल बगुले जैसा दिखाई देता था | गांव वाले पास गये तो माणूस ने कहा गांव वालों अब मैं आ गया हूं अब आप लोग चिंता ना करें हम अब जो भी चोर हैं उनको घर से निकलते ही पकड लेंगे | क्योंकि हम पूरे गांव में फ़ंदा बिछा देंगे | गांव वाले फिर खुश हुए, इतनी जल्दी खुश होने का दूसरा मौका वो छोडना नहीं चाहते थे | डुगडुगी वालों ने मानों श्वेतवस्त्रधारी माणूस को सर आंखों पर बैठा लिया |<br />
<br />
पर हिम्मत देखिये ना तो चोरों ने घर से निकलना बंद किया और ना चोरियां | माणूस कुछ दिन चौपाल पर गाने गा कर वापस अपने घर चले गये, पर जो लोग माणूस को गांव में लेकर आये थे, वो गांव वालों का सम्मान पा कर बौरा गये |<br />
<br />
अगला महीना आया, फ़कीर ने जैसा बोला था, चौपाल पर डेरा जमाया | चोरों में खलबली मची, क्योंकि गांव वाले भले ही फ़कीर की बातें पूरी नहीं मानते थे पर काम पर खेत जाने से पहले फ़कीर को प्रणाम करके जाते थे | कुछ ही समय में आपस में बात करते चोरों को सुना गया - "यार वो माणूस को तो पूरा सेट कर रखा था, हमारे लोग ही ले के आये थे, पर ये फ़कीर खतरनाक है, अपने आप आया है" - "हां सुना है इसके ना कोई बाल है ना बच्चे" - "क्या ? इसके बाल नहीं है?" - "सम्मिलित खी खी खी" - "चलो यार इसको पहले डरा के देखते हैं ना माना तो रात को ..." फिर से लकडबग्गा के समूह जैसी हंसी सुनाई दी |<br />
<br />
वही हुआ जैसा चोरों ने तय किया था | दो दिन बाद जब गांव वाले सोकर उठे तो सवेरे सवेरे उन्होनें पाया कि चौपाल पर कोई नहीं है और चारों तरफ़ खून बिखरा पडा है | कुछ लोगों ने प्रधान से जाकर पूछने की कोशिश की तो उनको बीच में ही रोककर डुगडुगी वालों ने और बेगारों ने बताया कि वो फ़कीर तो खुद चोर था, उससे गांव को खतरा था इसलिये हमने जब उससे मिलने गये तो वो खुद ही भाग खडा हुआ |<br />
<br />
<br />
पर रात को मिलने ? और वो खून ?<br />
<br />
अरे कुछ नहीं तुम लोगों को तो बस बातें बनाने को चाहिये जाओ अपने अपने खेत पर काम करो, ध्यान रखना कि लगान में कोई रियायत नहीं दी जायेगी |<br />
<br />
(<a href="http://baaharkibaat.blogspot.com/2011/11/blog-post_26.html" target="_blank">अगले पोस्ट में जारी ...</a>)<br />
<br />
<hr />
<div style="color: purple; font-family: Verdana,sans-serif;">
<span style="font-size: x-small;">(c) Naresh Panwar. All rights reserved. Distribution in any media format, reproduction,
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</div>Nareshhttp://www.blogger.com/profile/15461285128594088471noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8680343949748852832.post-16026977257844343232011-11-19T20:50:00.001+05:302012-02-10T11:26:57.582+05:30how veg are you?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
After seeing a lot of "pseudo veg" alerts on FB about the so called
veg products I decided to check myself, I picked 5 star (due to easy
availability, thanks to my kiddo) to analyze and here is the result -
</div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
<br /></div>
<span style="font-family: Verdana,sans-serif;">
</span><br />
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
Product: 5 star (Cadbury)</div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
It has a green symbol (aka a veg product) printed on it and some ingredient codes are -
</div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
<br /></div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
Emulsifiers
</div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
<br /></div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
471 - Mono- and Diglycerides of fatty acids aka E471 is derived from Glycerine (Glycerol / E422)
</div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
<br /></div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
422 - Glycerol aka E422 (Humectant, Solvent, Sweet Glycerin) is derived
through various industrial reselling practices, a majority of glycerine
originates as a by-product of soap manufacturing. Many soaps are
manufactured using animal fats. This indicates that even though
glycerine occurs naturally in plants, what ends up in food and soap
products mostly originates from animals.
</div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
<br /></div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
476 - Polyglycerol Polyricinoleate aka E476 is produced from glycol
esters the glycerol can be sourced from a by-product of animal fats in
the manufacturing of soap.
</div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
<br /></div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
Stabilisers
</div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
<br /></div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
412 - Guar Gum, used as thickener
</div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
<br /></div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
Acidity Regulator
</div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
<br /></div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
526 - Calcium Hydroxide, which is a mineral salt
</div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
<br /></div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
So the final story is that <u>if 422 is sourced from plants, only then it can be called a VEG product</u> but if source of above said emulsifier is animal fat then definitely it is a NON VEG product. Only the manufacturing company can tell us about the source of the emulsifiers, Without this information no one can claim that it's a VEG product.<br />
<br />
On the other hand I wonder why Indians specially Hindus are so crazy about being VEG, it's ok, it's a choice, I am just wondering because if we see our history, we were never stuck to VEG food. There is an incident when Vasishtha (who along with Pulatsya narrated the Vishnu PuraN) was offered the dish made of human flesh disguised as some other flesh, but he discovered it and cursed the King. Although this incident was result of a trick, but it only shows that in ancient times having non veg food was a common practice in all the Varnas of Vedic Culture. Another major incident is related to a legend Shakyamuni Buddha, he had literally pig's food or pork as his last meal and declared that he would die in the third watch of the
night. He sent word that Cunda (the smith who prepared food for him) was not to feel remorse but consider
this giving of alms of the greatest merit.</div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
<br /></div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
Any way it depends on you, your mindset and your beliefs, what to eat and what not to. Have fun.</div>
<span style="font-family: Verdana,sans-serif;">
</span><br />
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
<br /></div>
<div style="font-family: Verdana,sans-serif;">
Sources: wikipedia, veggieglobal.com & other sources from net.
</div>
</div>
<br />
<br />
<hr />
<div class="fb-like" data-href="http://baaharkibaat.blogspot.com/2011/11/how-veg-are-you.html" data-send="false" data-show-faces="true" data-width="450">
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<div class="fb-comments" data-href="http://baaharkibaat.blogspot.com/2011/11/how-veg-are-you.html" num_posts="2" width="500">
</div>Nareshhttp://www.blogger.com/profile/15461285128594088471noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8680343949748852832.post-522655012194656562011-10-19T23:50:00.000+05:302012-01-26T17:20:40.393+05:30राजनीती शास्त्र - फ़ूट अध्यायं<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">
राजनीती (सच बोलें तो दुर्जननीती) शास्त्र प्रथम अध्यायं - फ़ूट डालो राज करो<br />
<br />
फ़ूट कैसे डाली जाये?<br />
<br />
<br />
<br />
<b>एक ही जाति के हों तो</b> - सबसे आसान काम, जो जाति के लीडर बने घूमते हों उन पर "एक पार्टी के हों तो ?" वाला फ़ोर्मूला लगाओ, या लीडर्स के ऐसे विरोधी पकडों जो पइसा और नाम के लिए मरने मारने पर उतारू हों (अगर नहीं हों, तो कर दो), इन मूर्खों का समुचित प्रयोग करो और कई गुट बना दो, मीडिया को काम में लेना मत भूलो, कसम कुर्सी की इतने गुट और ऐसी गहरी खाई बनेगी कि भरने का नाम ही नहीं लेगी.<br />
<br />
<br />
<b>एक ही धर्म के हों तो</b> - तेरी जाति मेरी जाति उसकी जाति, टिकट लेगा? आरक्षण लेगा? मीडिया को पैसा खिलाओ, कुछ स्वय़ंसिद्ध विद्वान पकडो, उनसे मानव इतिहास के प्राचीनतम ग्रंथों पर मिट्टी डालने को बोलो, कसम कुर्सी की ऐसी गहरी खाई बनेगी कि भरने का नाम ही नहीं लेगी.<br />
<br />
<b>अलग अलग धर्म के हों तो</b> - उनके ऐसे तथाकथित विद्वान और धर्मगुरू पकडो जिन्हें नाम कमाने की भूख तो हो पर ऐसी कोई काबिलियत नहीं हो, मैनेजमेंट के फ़ोर्मूले लगाओ और इनके कंधे पर रखकर बन्दूक क्या तोप चलाओ, ऐसे लोग दुसरे धर्म को मिथक बोलने, गाहे बगाहे आंदोलनों के समय, या अच्छी भली State governments पर कीचड उछालने और अपने चेलों को बोलकर झूठे हलफ़नामे देलवाने में बहुत काम आते हैं, मौका मिलते ही दंगे करवाओ और नाम बेचारे विश्व कल्याण की कामना करने वालों पर डाल दो, हां पर मत भूलो कि अभी भी ब्रह्मास्त्र चलाना है - मीडिया को पैसा खिलाओ, बकबक करवा के जनता के दिमाग में जो चाहो वो भरने की कोशिश जारी रखो, कसम कुर्सी की ऐसी गहरी खाई बनेगी कि भरने का नाम ही नहीं लेगी.<br />
<br />
<b>एक ही पार्टी के हों तो</b> - इंटेलीजेंस वालों को पीछे लगाओ, अपने बाप बदलने वालों की और महासत्कर्मियों की लिस्ट और CD बनाओ, जब जरूरत हो तो पइसा या CD दिखाकर या जाति या कोई पद दिखाकर उससे खुद को बाप घोषित करवाओ, कसम कुर्सी की उस पार्टी में ऐसी गहरी खाई बनेगी कि भरने का नाम ही नहीं लेगी.<br />
<br />
बीच बीच में कुछ् खच्चर पकडो, उनसे फ़र्जी रिपोर्टें बनवाओ, मीडिया में देश भर को भरमाने वाले उद्गार दिलवाओ, एक आध सांप अपनी पार्टी में टोप पोजिशन पर भी रखो जो पालतू मीडिया में मौके बेमौके फ़ुफ़कारते रहें, चित मेरी तो ठीक वरना वो फ़ुंफ़कार सांप के निजि विचार थे ऐसा बोलो और पट को खुद का कर लो, महामनुष्य महामनुष्य खेलो, अपने महामनुष्य विरोधी राज्यों में भेजो, ये महामानव ना केवल उंगली करने (नाक में) के काम आते हैं वरन् ये प्राणी अच्छे जासूस भी साबित होते हैं, खुद के लोग और विरोधी लोगों का रूदन, विलाप, प्रलाप, चीत्कार, सीत्कार, चाहे कोई सी भी कार हो तुरंत आप तक खबर पहुचा देते हैं और आदेश की प्रतीक्षा में रहते हैं कि अब उंगली कैसे और कब करनी है (पुनश्च: नाक में). ब्रह्मास्त्र काम में लेना मता भूलो, मीडिया द्वारा अपने पाखंड सही साबित करते रहो, कसम कुर्सी की देश भर का दिमाग ऐसा फ़िरेगा कि ठिकाने आने का नाम ही नहीं लेगा.<br />
<br />
फ़ूट अध्याय पूरा नहीं किया जा सकता, लेखक का गिलास खाली हो गया है. हां अगर कोई राजनीतिक पार्टी पूरा अध्याय चाहती है तो दक्षिणा की राशि के साथ संपर्क कर सकती है ... ;)<br />
<br />
This article can also be read on NBT, <a href="http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/baaharkibaat/entry/%E0%A4%B0-%E0%A4%9C%E0%A4%A8-%E0%A4%A4-%E0%A4%B6-%E0%A4%B8-%E0%A4%A4-%E0%A4%B0-%E0%A5%9E-%E0%A4%9F-%E0%A4%85%E0%A4%A7-%E0%A4%AF-%E0%A4%AF" target="_blank">here</a><br />
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<br /></div>
<br />
<br />
<hr />
</div>Nareshhttp://www.blogger.com/profile/15461285128594088471noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8680343949748852832.post-16888365496679052142011-10-19T11:18:00.000+05:302011-11-24T10:50:36.050+05:30गृह मंत्रालय की हेल्पलाइन<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="about"></span><br />
<strong>रिंग रिंग ...</strong><br />
<strong>ring ring ...</strong><br />
नमस्कार, गृह मंत्रालय के बम धमाका हेल्प लाइन में आपका स्वागत है.<br />
<br />
अभी ताजे ताजे हुए धमाकों की जानकारी के लिए एक दबाएँ<br />
धमाकों पर गृह मंत्री के प्री रेकॉर्डेड सदाबहार बयानों के लिए 2 दबाएँ<br />
धमाकों पर प्रधान मंत्री की निंदा और कड़े कदम उठाने के बयानों के लिए 3 दबाएँ<br />
धमाकों पर प्रधानमंत्री के और ज्यादा कड़े कदमों के बयान के लिए 4 दबाएँ<br />
किसी ने धमाकों की जिम्मेदारी ली या नहीं ये जानने के लिए 5 दबाएँ<br />
धमाकों पर दिग्विजय सिंह के RSS का हाथ है वाले बयान के लिए 6 दबाएँ<br />
गलती से अगर कोइ आतंकी पकड़ा गया है और उसे कोंग्रेस सरकारी दामाद बनाने जा रही है तो उसका नाम जानने के लिए 7 दबाएँ<br />
आतंकी का कोइ धर्म नहीं होता जैसे बयानों के लिए 8 दबाएँ<br />
<strong>अगर आपका कोइ अपना इन धमाकों में मारा गया है तो गांधी जी की रामधुन सुनाने के लिए 9 दबाएँ</strong><br />
पिछले मेनू है ही नहीं, इसलिए ये मेनू फिर से सुनने के लिए 0 दबाएँ<br />
<strong>और अगर आप खुद धमाके का शिकार हुए हैं, और अभी तक जिन्दा हैं तो अपना गला दबाएँ</strong><br />
<br />
कॉल करने के लिए धन्यवाद, केन्द्र सरकार के बचे हुए साल आपको लिए शुभ हों ...<br />
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This post can also be found <a href="http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/baaharkibaat/entry/%E0%A4%97_%E0%A4%B9%E0%A4%AE_%E0%A4%A4_%E0%A4%B0_%E0%A4%B2%E0%A4%AF_%E0%A4%95_%E0%A4%B9_%E0%A4%B2_%E0%A4%AA%E0%A4%B2_%E0%A4%87%E0%A4%A8">here</a><br />
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</div>
<br>
<br>
<hr>
<fb:like href="http://baaharkibaat.blogspot.com/2011/10/blog-post_18.html" send="false" width="450" show_faces="true"></fb:like>
<fb:comments href="http://baaharkibaat.blogspot.com/2011/10/blog-post_18.html" num_posts="2" width="500"></fb:comments>Nareshhttp://www.blogger.com/profile/15461285128594088471noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8680343949748852832.post-21370253651239904702011-10-19T11:14:00.000+05:302011-11-24T10:52:36.893+05:30सर जी और उनकी जरूरतें !!!<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><br />
<div style="clear: left; float: left; margin-bottom: 1em; margin-right: 1em;"><img alt="Smile" border="0" src="http://readerblogs.navbharattimes.indiatimes.com/images/smileys/smiley-smile.gif" title="Smile" /></div><span class="about"><span style="color: red;">जरूरत है जरूरत है जरूरत है</span> ... <strong>सर जी</strong> गाना गा रहे थे. मैंने हिम्मत करके पूछ ही लिया किसकी जरूरत है सर जी? हिम्मत करके इसलिए क्योंकि सर जी को कोइ सुझाव देता है या प्रश्न पूछता है तो या तो अपने साझीदार भाई के गुंडों से आधी रात को ठुकवा देते हैं या उठवा के २-४ दिन ना जाने कहाँ बंद रखते है. अगर कभी (साल दो साल में एक आध बार) जवाब देने का मन भी हुआ तो बोल देते हैं सब ठीक है, हम करेंगे, हमें करना चाहिए ... और ये बोल के मुस्कुराना नहीं भूलते !<br />
<br />
खैर जब मैंने पूछ ही लिया और पूछने के बाद दायें बाएं देखा कि सर जी का कोइ गुंडा तो नहीं आ रहा है मारने के लिए कि तूने हफ्ता टैक्स नहीं दिया ला दिखा तेरे सारे डोक्युमेन्ट्स ... पर कमाल ... कोइ गुंडा नहीं आया बल्कि सर जी खुद बोले देखो मोहल्ले में ये बाहर के पड़ोसी मोहल्ले के बदमाश आ के धमाके वगेरह कर जाते हैं, इसलिए ...<br />
तभी सर जी का एक चमचा सर जी की बात काटते हुए बोला जाने दो सर जी <strong>अब तो इन मोहल्ले वालों को धमाके की आदत पड़ गयी है, इनका तो काम ही हमें चुन कर मरना है, फालतू में यूँ ही चिल्ल पों मचा रखी है. क्यों बे पता नहीं क्या तुम्हे ? क्या आज </strong><strong>या कल पहली बार हो रहे है क्या धमाके?</strong> चल ...<br />
और इससे पहले कि वो अपने डोगी मुझ पर छोडता सर जी उसकी बात काटते हुए बोले, इसलिए हमें मोहल्ले की सुरक्षा और मजबूत करनी होगी, सेक्युरिटी बढानी होगी, और देखना होगा कि हमारे मोहल्ले के युवकों में (जो कि मौका मिलने पर आपस में झगड पड़ते हैं) समझ आये कि मोहल्ला सबका है और हमें पड़ोसी मोहल्ले वालों से बच के रहना है. हमें इन सब चीजों की बहुत सख्त जरूरत है.<br />
<br />
कसम वीकेंड की दिमाग घूम गया, में बोला पर सर जी मोहल्ले के सारे लोगों ने आपको ही तो मोहल्ला प्रधान चुना हुआ है, आपसे पहले आपके चाचा थे उनसे पहले आपके दादा थे ... ये मोहल्ला तो मानो आपकी जागीर ही है, आपके पास सारा उगाही का पैसा आता है. आपने बोला था कि मोहल्ले के रास्तों पर गेट लगाएंगे, सिक्यूरिटी लगाएंगे, सी.सी.टी.वी. लगाएंगे वगेरह वगेरह ... पर ना तो कोइ गेट लगा, ना कैमरा और ... पर आपके खास लोगों ने जरूर अपने अपने मकानों पर नयी मंजिलें बनवाई और पेंट करवाया, गेट पर कुत्ते भी बांधे रखते हैं कि कोइ अंदर झाँक भी ना पाए !! और पहले आप ही मोहल्ले के युवकों को भरमा चुके हैं कि मोहल्ले पर पहला हक ये राईट साइड के चार घर और लेफ्ट साइड के तीन घरों का है. मोहल्ले के युवकों का क्या सबका दिमाग तो आपने और आपके पूर्वजों का लोगों को बांटने की राजनीती से खराब किया हुआ है. ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग कनाफ्युजिया के और अपने अपने डर के मारे आपको ही बार बार चुनते रहें. <br />
<br />
क्या बोल रहा है ? सर जी बोले इस नाजुक टाइम में तू लोगों को बांटने की राजनीती कर रहा है! चुनाव में खडा होगा क्या? ये सुन कर सर जी के चमचे जो इतनी देर से मन ही मन कुढ़ीया रहे थे ठठा कर हंस पड़े और बोलने लगे हाँ हाँ तू अबके चुनाब लड़ लियो तब देखेंगे तेरा काला सफ़ेद धन और तेरी सफ़ेद टोपी ...<br />
<br />
सर जी फिर बोले (आज तो कमाल कर दिया, क्यूंकि सर जी बोलते कम ही हैं) देखो हम कमजोर तो है पर हम हार नहीं मारेंगे, हम कमजोर नहीं है ????? हमें ये जरूरत है हमें वो जरूरत है.<br />
मेरी खोपड़ी इतना तनाव और बेतुकी बातें झेलने के लिए प्रोग्राम्ड नहीं है सो मैं तन्ना के फिर से सर जी को राय दे बैठा कि <strong>सर जी अगर आप सभी घरों के बच्चों को स्कूल जाने देते तो आज सारा मोहल्ला एक होता</strong> <span style="text-decoration: underline;">हाँ पर फिर ये होता कि प्रधान आप नहीं होते</span>, अभी तो सारा मोहल्ला आपका, सारा फंड आपका, लोग अभी तक तो आपका कहना भी मान रहे हैं भले ही किसी का धमाके में हाथ उड़ गया और किसी का पैर या कोइ बेचारा एक जून की रोटी ही खा पा रहा है, <span style="color: red; text-decoration: underline;">सारी ताकत आपके हाथ में है अगर आपको जरूरत है तो आप करो ना किसने रोका है</span>? क्या अब इसके लिए भी आपको इटालियन में समझाऊं क्या? <br />
<br />
ये सुनते ही सर जी कि मुखमुद्रा बदल गयी और उनका इशारा पाते ही उनके चमचों ने अपने अपने पकडे हुए डोगी और गुंडों को मेरी और इशारा कर दिया ...<br />
<br />
सपने भी ना ... नींद में भी मेरी हार्टबीट बढ़ चुकी थी, भला हो श्रीमती जी का जिन्होनें क्रोध के साथ मुझे जगा दिया और १० मिनट में सब्जी लाने का अल्टीमेटम दे डाला...<br />
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<fb:comments href="http://baaharkibaat.blogspot.com/2011/10/blog-post.html" num_posts="2" width="500"></fb:comments>Nareshhttp://www.blogger.com/profile/15461285128594088471noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8680343949748852832.post-65533504375612383652011-10-16T11:23:00.000+05:302011-11-24T10:54:14.159+05:30असली खतरा किससे?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="about">चलिए बहुत थोड़े में भारत के एक ताकतवर पड़ोसी पर नजर डालते हैं कि वो आजकल क्या कर रहा है?<br />
<br />
चीन - रूस सम्बन्ध - Strategic Partenership (ना तो तू मेरे से पंगा लेगा और ना मैं तेरे से)<br />
चीन - पाक सम्बन्ध - सबको पता है, चीन पाक का नया माई बाप है और अमेरिका पुराना<br />
चीन - अफ्रीका - ब्रिक - कोशिशें जारी है कि इसे और औपचारिक शक्ती बनायें जो कि विश्व को ढालने में सहायक हो (यांग के शब्द). अफ्रीका में चीन ने हजारों किलोमीटर की रेल और सड़क निर्माण में सहायता की है. <br />
<br />
आगे बताने से पहले ASEAN में देखें कौन कौन है - <br />
<br />
ब्रुनेई, कम्बोडिया, इंडोनेशिया, लाओस, मलेशिया , म्यांमार, फ़िलीपीन्स, सिंगापुर, थाईलैंड और विएतनाम<br />
<br />
चीन - ASEAN - FTA प्रभावी, अब आगे आसियान, चीन, साऊथ कोरिया और जापान का मुक्त व्यापार प्रस्तावित<br />
<br />
प्रेस को कितनी आजादी है ये शायद इस विडियो से समझ में आ जायगा जिसमें शंघाई पुलिस विरोध प्रदर्शन के <br />
विडियो बनाने से रोकने के लिए विदेशी मीडियाकर्मियों से कैसे पेश आती है, देशी तो वैसे ही उनका साथ देते हैं - <br />
<br />
<a href="http://www.bbc.co.uk/news/world-asia-pacific-12666701">http://www.bbc.co.uk/news/world-asia-pacific-12666701</a><br />
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लिंक पर ना जाएँ तो खुद बी.बी.सी. के कर्मी के शब्दों में - <br />
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I was dragged by the hair . . . then slammed to the floor . . . had my leg crushed at the vehicle’s door.<br />
<br />
चीन Xinxiang में हुए दंगों के पीछे कोइ राजनीती नहीं करता और सीधे सीधे मुस्लिम अतिवादियों का हाथ बताता है, चीनी पुलिस संदेह के आधार पर भी लोगों को गोली मारती है और किसी भी दानवाधिकार आयोग जैसा अजगर उसने नहीं पाल रखा है. साथ ही साथ चीन पाक को भी कड़े शब्दों में समझा देता है कि लश्कर की और पाक की उइगुर आतंकियों को किसी भी तरह की मदद पाक के लिए निश्चित रूप से घाटे का सौदा होगी.<br />
<br />
चीन पाक को सहायता और निर्देश देता है कि भारत को कैसे उलझाए हुए रखे, उसने हालिया रिपोर्ट्स के अनुसार भारत के साथ युद्ध की पूरी तैयारी कर रखी है, सीमा पर आणविक मिसाइलें तैनात कर रखे है और अभी कुछ समय पहले पाक सेना के साथ भारतीय सीमा पर युद्धाभ्यास किया था.<br />
<br />
ये सब जो भी भारत के चारों और हो रहा है उसकी भारत की नीतियों और भारत के कोइ समस्या पर एक्शन से तुलना करें. प्रश्न ये है कि क्या UPA-2 भारत को पूर्णतया बर्बाद किये बिना देश को अपनी गुलामी से मुक्त कर देगा?<br />
<br />
IAF chief वैसे भी सच सच बोल ही चुके हैं, सरकार को बताया जाता है कि ब्रह्मपुत्र पर चीन जो बाँध बना रहा है और कुछ समय बाद वो इसकी धारा भी मोड़ेगा जिससे भारत का हजारों वर्ग किलोमीटर का क्षेत्र सूखा हो जाएगा तो हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं कि ब्रह्मपुत्र पर चीन के बाँध से हमें खतरा नहीं ??? क्या अब आगे वो बताएँगे कि "हमें" असली खतरा तो बाबा और अन्ना से है?</span><br />
<br />
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<fb:comments href="http://baaharkibaat.blogspot.com/2011/10/blog-post_204.html" num_posts="2" width="500"></fb:comments>Nareshhttp://www.blogger.com/profile/15461285128594088471noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-8680343949748852832.post-1899118694376653002011-10-15T11:25:00.000+05:302011-11-24T10:55:13.768+05:30भारत पाकिस्तान से डरता है, और भारतीय जनता ?<div dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on"><span class="about">एक कहावत है - आपकी रूचि राजनीती में हो या ना हो, राजनीती की रूचि आपमें हमेशा होती है|<br />
<br />
पिछले कुछ सालों में जो कुछ भी भारत में हो रहा है, उससे आम आदमी अपने आप को नीति नियंताओं के कारण ठगा हुआ महसूस कर रहा है और UPA-2 के कार्यकाल में उसकी ये लाचारी बढती ही जा रही है|<br />
<br />
नीचे जो में लिख रहा हूँ वो विकिलीक्स के कुछ पुराने केबल है, जो कि आप - हम सभी जानते हैं कि भारत सरकार के वक्तव्यों से ज्यादा विश्वसनीय हैं, इन्हें आज यहाँ लिखना और भी ज्यादा प्रासंगिक है| पढ़िए और समझिए क्यों -<br />
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केबल 1.<br />
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भारत, पाकिस्तान से डरता है - अमेरिका<br />
<br />
नई दिल्ली से वाशिंगटन भेजी 3038 केबल्स उजागर करती हैं कि भारत, 2008 के मुंबई हमलों के बाद पाकिस्तान पर किसी प्रकार के एक्शन का अनिच्छुक था.<br />
<br />
टिमोथी रोमर का माना था कि भारतीय सेनाएं प्राम्भिक बढ़त के बावजूद धीमी रसद और मूवमेंट की परेशानियों की समस्या से रूबरू हो सकती थी|<br />
<br />
केबल 2.<br />
<br />
यू. एस. ने कभी भी भारतीय एक विमीय विचार कि तालिबान अंधेरी ताकतें है को साझा नहीं किया|<br />
<br />
(झटका लगा? पर ये सच है और ये भारतीय विदेश नीती की सबसे बड़ी विफलताओं में से एक है)<br />
<br />
केबल 3.<br />
<br />
भारत में आतंकवादी को दण्डित नहीं किया जा सकता <br />
<br />
(आप और हम सभी देख ही रहें हैं कि आतंकवादी मदनी का बंगलोर के 5 सितारा आयुर्वेद चिकित्सालयों में इलाज़ होता है, अफजल को कैसे बचाया जाता है और कसाब ... ना ही पूछो)<br />
<br />
केबल 4.<br />
<br />
कोंग्रेस ने मुम्बई हमलों के बाद धार्मिक राजनीती कि थी.<br />
<br />
(शुरुआत हुई A R Antulay के बयानों से जिसमें उन्होंने कहा कि - Hindutva forces may have been involved in the Mumbai terror attacks, कोंग्रेस ने दो दिन तक इस बयान से दूरी बनाए राखी और फिर एक विरोधाभाषी बयान जारी किया, जिससे परोक्ष रूप से इस षडयंत्र को समर्थन मिलता था)<br />
<br />
केबल जारी - इस सारे घटनाक्रम ने दर्शाया कि ये पार्टी जाती-धर्म आधारित राजनीती सहर्ष करने को तैयार है अगर वो इसके हित में हो - मलफोर्ड <br />
<br />
केबल 5.<br />
<br />
ISI ने भारत में आतंकी हमलों को अनुमती / सहमती दी <br />
<br />
ने आतंकवादियों को भारत के अंदर जाने और पाक सेना द्वारा चुने हुए लक्ष्यों पर हमले कि अनुमती दी|<br />
<br />
<br />
अब सवाल ये है कि मैंने ये केबल ही क्यों चुने? जवाब साफ़ है, इन सभी केबल्स को हालिया घोटालों, और सारे सरकारी तंत्र द्वारा भ्रष्ट लोगों को हर तरीके से बचाने कि कोशिशों की रोशनी में देखें|, आपको उत्तर मिलेगा - क्या आपको लोकपाल बिल मिला? जी नहीं, अन्ना को, आप को और हम सभी को सिर्फ धोखा मिला| क्या काला धन वापस लाने की मांग मानने के बाद भी आज इतने समय के बाद में भी कोइ कार्यवाही हुई? बिलकुल नहीं, सिवाय बाबा और उनके समर्थकों को डंडे मार मार के भगाने के सिवा इस सरकार ने काले धन से जुड़े मुद्दे या लोगों पर कोइ कार्यवाही नहीं की| क्या ये केबल हमें नहीं बताती / इशारा करती कि क्यों नहीं हुआ वो सब जो होना चाहिए था? कहाँ लगा है सारा का सारा तंत्र और इसकी ऊर्जा?<br />
<br />
अब अलविदा कहने से पहले अंतिम केबल -<br />
<br />
केबल 6.<br />
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थोड़ा और पीछे - अपनी सरकार बचाने के लिए केन्द्र में सत्ताधारी पार्टी MPs को खरीदने के लिए करोड़ों और जेट विमान ले कर तैयार थी|<br />
<br />
(सतीश शर्मा - पोलिटिकल काउंसलर - अकाली दल (8 वोट) - एन.आर.आई. संत चटवाल याद है या भूल गए? इसमें पी.एम. का नाम भी आया था)<br />
<br />
मेरा उद्देश्य राजनीती नहीं है, सिर्फ कुछ चीजें याद दिलाना है पर जैसा कि कहा जाता है - आपकी रूचि राजनीति में हो या ना हो ...</span><br />
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