जनवरी 30, 2012

चौबे दुबे और आपकी कहानी



चौबे जी को अपने एन.जी.ओ. में फंड में कमी आती महसूस हुई. तुरंत कोढ़ कमिटी कि मीटिंग बुलाई गई.

कोढ़ कमिटी कि ज्यादातर मीटिंग सेफ्टीगन पिद्दी में होती थी. वो एक छोटा सा कस्बानुमा गाँव था जो था तो भारत में पर जैसे हिंदू माइनोरिटी होते ही उस जगह शरिया आ धमकता है भले ही वो हिस्सा भारत में हो उसी तरह इस सेफ्टीगन में भी राज एक एन.जी.ओ. चलाने वाले चौबे जी का चलता था.

चौबे जी अपने जमाने में बोडी बिल्डर हुआ करते थे, गाँव वालों को पीटना, फिर भाग के महानगर जा के वहां गुंडागर्दी करते हुए कभी साथियों को तो कभी ड्यूटी कर रहे पुलिस वालों को पीटना वगैरह उनके कर्म थे जिनको कई साल बाद मीडिया पानी से धो के फफूंद हटा के, चमकीली चद्दर में पैक कर के बेच रहा था. और मोटा मुनाफ़ा कमा रहा था.

नहीं पल्ले पड रहा? अब भारत में सच बोलने पे कोई ना कोई आयोग पीछे पडने की संभावना रहती है कभी मानवधिक्कार आयोग, कभी मुस्लिम (अल्पसंख्यक) आयोग कभी चुनाव आयोग तो कभी सरकारी एजेंसियां मिल के ही सात साल पुरानी रसीद निकाल के कहती हैं कि ये तो चोर है !! खैर जान कीबोर्ड पे लेकर थोडा और समझाने की कोशिश करता हूं, क्या है कि भलाई का कीडा काटा है ना मुझे और वो भी बडे जोर से काटा है।

हुआ यूं कि एक बहुत बडे वकील हुआ करते थे। बडे इन द सेंस कि मालदार थे और चोरों की लगभग सभी मंडलियों के सरदारों से राम रमी थी। एक बार वैराग्य जागने पे देव भूमि छोड के अमेरिका जा के वहीं की नागरिकता ले के बस गये थे पर कुछ सालों में ही वहां गुलाटियां मारने को ना मिलने के कारण मन मसोस के आदत के हाथों मजबूर हो के देव भूमि पे धीमे आते कलियुग को तीव्र गति से अवतराने पुन: लौट आये थे ।

वापस आने पर कैटल क्लास पे राज करते समूह में उनको उच्च पद प्राप्ति हुई, जरूर पिछले जन्मों के पुण्यों का फ़ल होगा ऐसा उनके जानकार बताते हैं।

कैटल क्लास पे राज करता समूह वैसे तो निर्विघ्न राज कर रहा था, नये नये तरीके और मार्ग निकाले गये थे जिन पर क्षुद्र मानव नहीं वरन दुनिया के सभी देशों की मुद्रायें निर्बाध गति से इधर से उधर जा सके, पर ना जाने क्यों प्रगति करते कुछ लोग कैटल क्लास का भला सोचने वाले लोगों की आंखों की किरकिरी बन रहे थे । इन कैटल क्लास का भला सोचते लोगों को लग रहा था कि भारत की मुद्रा पे काली स्याही पोत के जो मुद्रा एक्सप्रेस वे पे धकेल दिया जाता है उसे अगर कैटल क्लास के भले पे काम लाया जाये तो शायद इस क्लास का कुछ भला हो !! कैसी कैसी तुच्छ सोच रखते हैं ये लोग भी, क्या करें इन जैसे लोगों ने कभी 'माइक' पकडे लेडी को तो सुना नहीं सो इनकी सोच ही छोटी है, छोटी सोच वालों की छोटी छोटी मांगें !!

पर इन मांग करने वालों में से एक जने से राज करते लोग भयभीत हो गये, वो सीधा साधा सन्यासी था जिसे राजनीती का क ख ग भी नहीं आता था पर उसने इन राज करते , हां यार वही कैटल क्लास पे राज करते लोगों से मुद्रा पे काली स्याही पोतने का विरोध कर डाला और सबसे अजीब मांग तो ये कर डाली कि जो मुद्रा पहले स्याही पोत के एक्सप्रेस वे पे धकेल दी गयी है उसे वापस लाओ ... हा हा हा हा हा मेरी तो हंसी नहीं रुक रही, कैसी कैसी बेतुकी मांगें करते हैं ये कैटल क्लास के लोग !

खैर इस बेतुकी मांग को सुनकर दिल्ली में बैठे चमगादडों ने हाई फ़्रिक्वेंसी में चिल्ली मारी जो कि वो आवाज सुन सकने वाले सभी प्राणियों को पूरी एको साउंड के साथ दुनिया भर में सुनाई दी।

इस चिल्ली को सुन के कई प्राणी सहायता करने आये, राज करते लोगों ने उनमें से जिन लोगों को चुना उनमें से एक गणित का ज्ञाता था जो कि गुणा भाग में माहिर था इतना माहिर कि उसे ये तक याद नहीं रहता था कि उसने किससे कितना रोकडा उधार लिया है और कब कब कहां कहां लिया है ! एक प्राणी ऐसा था जो कि जिंदगी भर ईमानदार छवि के साथ रहा पर अब ठेले पे आ के टैक्सी से आया हूं बोलता था । एक अन्य प्राणी को रंगा सियार कह सकते हैं, वो पवित्र माने जाने वाले भगवा रंग के कडाह में कूद गया था - हरियाणा प्रदेश में कैटल क्लास के राजाओं की खिदमत करते करते, जब बाहर निकला तो सबको सर झुकाये देख के बडा चकराया, आइना देख के उसे जब समझ आया तब से उसने अपने नाम के आगे स्वामी लगा लिया और पूरे जंगल में रंगे सियार की भांति हुक्म देता घूम रहा था कि उसे सीधा भगवान ने ही भेजा है। एक अन्य प्राणी जो चुना गया था वो बचपन में ठुक ठुका के इतना कुंठाग्रस्त हो गया था कि जब वो अपनी आप बीती बताता तो लोग व्यंग समझ के हंसने लगते और वो सबपे लानत भेज के खुश होता रहता। अब सवाल था कि इन सर्कस के प्राणियों का नेता किसे चुना जाये जिसे ये जैसा बोले वैसा करे और जिसका लोग भी भावनाओं में बह के यकीन कर सकें।

इनके नेता के रूप में हमारे प्यारे चौबे जी को चुना गया उनकी ख्याति अनशनकारी के रूप में अपने प्रदेश की सीमायें फ़ाड फ़ाड के बाहर निकलने को बेताब हो रही थीं।

गुणा भाग को भेजा गया चौबे जी को शीशे में उतारने, गुणा भाग ने ये काम बखूबी किया।

चौबे और उनकी मंडली ने आ के "चुरघुस" नाम का मंत्र मीडिया के लाउडस्पीकर में फ़ूंका और वो सारे देश में गूंज गया । इस मंत्र की इतनी महिमा गायी गयी कि सबको यकीन हो चला कि पचास पैसे से ले कर हजार रूपये के नोट तक का भ्रष्टाचार बस अब एक टोपी लगा के 'मैं भी चौबे' बोलने और हमें चाहिये "चुरघुस" बोलने से खत्म हो जायेगा। जनता जो मोमबत्ती जला के ये सब फ़ोर्ड सर्कस कर रही थी को देख देख के यूरो, डोलर और स्विस फ़्रेंक तक सब हंस रहे थे ।

पर चौबे जी ने अपना अनशनकारी धर्म निभाया और मीडिया के कांधे चढ कर देश के लिये उठी आवाजों को 'चेक मेट' कर दिया । और मजे की बात ये कि देश का नाम ले के देश को ही जो शह मात दी गई उसे महसूस तो सबने किया पर गलती किसने, कहां की ये काफ़ी समय तक किसी के समझ ही ना आया। चौबे जी फ़ूले ना समाये ।

हर पांच साल बाद आने वाली बरसात आने को थी । चंदा ठिकाने लग चुका था, फ़ंड में कमी आते देख चौबे जी ने कोढ कमिटी की मीटिंग बुलाई और इस बार सर्कस समुन्दर के किनारे लगाना तय हुआ ।

चौबे जी भूल गये कि जनता ने स्टील के गिलास के अंदर विटामिन मिला पानी और गुणा भाग की कमजोर गणित, ईमानदार का ठेला, रंगे सियार की हुंवा हूंवा, और एक कुंठित व्यक्तित्व को विश्वास के साथ पहचान लिया है ।

समुन्दर के किनारे जो भंडारा लगा उसपे छुट्टी के दिन भी गिने चुने लोग देखे गये । यही वो समय था जब चौबे जी को लगा कि कुछ गलत किया मैंने और उन्होनें घबरा के 'गुणा भाग' की आवाज को पहली बार अनसुना करके जोर से उस सन्यासी को आवाज लगाई जिसके लिये वो कहा करते थे कि इसे तो अपने पांडाल में घुसने तक नहीं दूंगा । पर सन्यासी भी होशियार हो चुका था, उसने छाछ से ना जलने का निश्चय किया और दूर से ही वापस आवाज लगा दी की मेरा आपको पूरा समर्थन है। गोल भवन के कर्णधारों ने उस शाम दो मुर्गे ज्यादा खाये ।

समय होत बलवान । चौबे जी जो मीडिया के कांधे चढ कर महापराक्रमी की पदवी प्राप्त कर चुके थे, समुन्दर किनारे सदमे में आ गये । वैसे ही तबीयत खराब थी थोडी सी, सदमे के कारण और खराब हो गई । जनता उनको अब चौबे जी की बजाय दुबे जी बोलने लग गयी। दु:ख और सदमें में उन्होनें अस्पताल की शरण ली, जहां फ़िर से राज करते लोगों ने उन्हें गिनीपिग बना डाला । और मनुष्यों पे सीधे ही दवाई टेस्ट करने वाले डाक्टर को इस उत्कॄष्ट कार्य के लिये एक सरकारी चाटुकारों को दिया जाने वाला पुरस्कार भी दिया गया । दुबे जी अभी भी स्वास्थ्य लाभ कर रहे हैं, आशा है वो स्वस्थ हो कर लौटेंगे और इस बार गुणा भाग, ईमानदारी का ठेला और कुंठित व्यक्तित्व को किनारे कर राष्ट्र के लिये सच में लडने वाले सन्यासी के साथ ईमानदारी से आ कर पुन: चौबे जी कहलायेंगे । अन्यथा जिंदगी भर चौबे जी रहने के बाद दुबे जी बनने का दर्द उन्हें हमेशा वैसे ही सालता रहेगा जैसे कि 'बहुत बडे वकील' और सरकारी राजपरिवार को नेटवर्किंग साइट्स पर फ़ैला सच सालता है।


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