दिसंबर 16, 2011

विजय और पराजय, क्या सीखा हमने?

व्यंग्य पढ़ पढ़ के आप मेरे ब्लोग्स से परेशान हो चुके हैं तो लीजिए कुछ सीरियस मैटर -


अगर हम आज विजय दिवस मनाते हैं तो हम 20 नवंबर को पराजय दिवस क्यों नहीं मनाते?

हम ये याद क्यों नहीं करते की भारत ने युद्ध और अपनी जमीन दोनों खोई थी|
भारत की खिलाफ युद्ध और भारतीय जमीन पर कब्जा तब रुका जब चाइना ने एकतरफा सीजफायर किया -  20 नवंबर 1962 को|

क्या हम पराजय दिवस इसलिए नहीं मनाते कि हमारे में खुद को आईने में देखने का साहस नहीं है या फिर इसलिए कि जिन लोगों का शासन रहा उन्होंने ऐसा उचित नहीं समझा कि "महान", "सेकुलर" और "बच्चों के सरकारी चाचा" ने नेवी और एयर फोर्स का प्रयोग नहीं किया ये बात हर साल हार के साथ क्यों याद करें?

भारत में सिर्फ नेहरू, गांधी और उनके वंशजों के गुणगान का रिवाज है, उन पर उठने वाले प्रश्न निरुत्तर रह जाते हैं, पूछने वाले के पीछे एक तंत्र पड़ जाता है या फिर अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता यहाँ तक आ के दम तोड़ देती है |

भारत ने गांधी और गांधी के द्वारा उनके चुने गए सत्ता के भोगी जवाहर लाल नेहरू पे पूरा भरोसा कर के क्या पाया? विभाजन और विषम आर्थिक सामाजिक समस्याएँ, जिनके साथ मुस्लिम तुष्टिकरण मुफ्त मिला|

आज हमारा देश जिन समस्याओं से जूझ रहा है वो इन महापुरुषों की ही खड़ी की हुई है, और इनकी राजनीतिक वंशज एक राजनैतिक पार्टी ही इन समस्याओं को आगे बढाने, और खत्म ना होने देने के लिए जिम्मेदार है|

मीडिया वही दिखाता है जो मीडिया हाउस के फेवर में हो या इनके वंशजों के| सच की तलाश और जनजागरण इसीलिए भारत में एक अत्यंत ही दुष्कर कार्य है| खुद से पूछें की आप अपना क्या योगदान दे रहे हैं इसमें?

याद रखें हमें हमारी कमियां देखना और उन्हें दूर करना इसलिए भी जरुरी है की जो देश और समाज अपनी कमियां ना देख कर सिर्फ अपनी उपलब्धियों के ही गुणगान में मग्न रहता है वो समय के साथ नष्ट हो जाता है|

इसलिए हम आज विजय दिवस तभी मनाने का हक रखते हैं अगर हमने 20 नवंबर को पराजय दिवस के रूप में मनाया हो, खुद की कमजोरियों का विश्लेषण किया हो और कुछ सीखा हो अपनी पराजय से|


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